पाला पड़ा गपोड़ों से।
डर लग रहा थपेड़ों से।।
अर्थव्यवस्था पटरी पर
आई चाय पकौड़ों से।
बच्चे बिलखें कलुआ के,
राहत बँटी करोड़ों से।
जीत गए फिर से खच्चर,
शर्त लगाकर घोड़ों से।
जो ठोकर के आदी हैं,
उनको क्या डर रोड़ों से।
I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes...
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