Wednesday, September 2, 2009

मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...

इतनी मुख्तर-सी मुलाकात भला
क्या राहत दे सकती है
जबकि वह समय करीब है,
जब मुझे तुमसे विदा लेनी होगी...
वह घड़ी आ चुकी है
अच्छा तो अलविदा-अलविदा...
यह सनाकपूर्ण कविता, यह विदाई कविता
जिसे मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे एल्बम में...
संभवतः यही एकलौती निशानी होगी
मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...


(यह प्रसिद्ध कविता रूस के महान कवि एम्.वाई. लोमोर्तोव ने लिखी थी...जिसको हिन्दी में संवाद प्रकाशन, मेरठ ने 'उसका अनाम प्यार' किताब में छापा है। मैंने इसे कई बार पढ़ा है।)

चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ क्या होता है मैनेजमेंट?

पहला प्रश्न पूछता तुमसे
अपने बारे में बतलाओ?
उसके बाद टेस्ट फिर होगा
तब तक बैठ के खाना खाओ!

अबतक कितना अनुभव पाया
कितना कंहा मिला पैसा?
सब हिसाब खुलकर बतलाओ
काम किया कैसा - कैसा?

भाषा कितनी आती तुमको
ये भी जरा बताना?
क्या तुमको कम्पूटर आता
इसको नही छिपाना?

पढी पढाई कैसी-कैसी
साफ़-साफ़ समझाओ?
हेरा-फेरी कितनी आती
ये भी तुम बतलाओ?

चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ
क्या होता है मैनेजमेंट?
किसको कंसल्टेंट रखोगे
किसको करोगे परमानेंट?

अभी काम जो बड़ा किया है
उसका भेद बताओ?
कैसे बड़ा काम वो था
ये भी तुम समझाओ?

आप यंहा पर आते हो तो
पहला काम करोगे क्या?
अपने अनुभव से तुम बोलो
ऑफिस को दोगे क्या - क्या?

Tuesday, September 1, 2009

प्रार्थना - २ - संकट घड़ी

हे इन्टरवियू लेने वाले तुमको मेरा प्रणाम
दाम की बात बाद में होगी पहले दे दो काम

आप पूछना जो भी चाहो खुलकर सभी बताऊंगा
ज्वाइनिंग की कोई बात नही, जब कह दो आ जाऊंगा

आप सर्वज्ञाता हैं दाता समझ हमारे आया है
और आपका हँसता चेहरा भी मेरे मन भाया है

पर दो बातें दास आपसे कहता है कर जोर
धीरे से बस बात बताना नही मचाना शोर

आफिस का एक समय बता दो, दूजा कब तक काम करूँगा
जिससे कहोगे डर जाऊंगा जिससे कहोगे नही डरूंगा

अन्तिम विनती एक है साफ़-साफ़ बतलाना
मुझे रखोगे या दूजे को अभी यहीं बतलाना

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