Wednesday, November 5, 2008

गरीब की लुगाई पूरे गांव की भौजाई।

बात बिल्कुल ताजी है। ताजी इसलिए कि अखबार और मीडिया में यह खबर प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित हो रही है। जी हां हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र में हाल की घटित घटनाओं की।

हाल ही में महाराष्ट्र के राज ठाकरे की उत्तर भारतीयों और बिहारियों पर की गयी टिप्पणियों पर गहमा-गहम बहस जारी है। चारों तरफ यही चर्चा है कि कल की मुख्य खबर क्या होगी। और हो भी क्यों न इस महीने की मुख्य खबरों में इसे तवज्जो जो दी गयी है। मुझे तो यहां तक यकीन है कि इस वर्ष के सप्ताहांत के अंतिम दिनों में इस घटना को भी अन्य प्रमुख राष्ट्रीय घटनाओं की तरह प्रमुखता दी जायेगी।

मुझे राज ठाकरे के बयान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं हैं लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि उसके भड़काऊ भाषण और बयानबाजी से बिहारियों और उत्तर भारतीयों के गरीब वर्ग की जनता को बहुत कष्ट उठाने पड़े हैं। उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ ही उनके जान-माल को भी काफी नुकसान पहुंचा है। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि इस लूट-खसोट में मनसे के कार्यकर्ताओं के अलावा महाराष्ट्र के उपद्रवी और लुटेरे वर्ग भी संम्मिलित रहे होंगे। उपद्रवी और लुटेरों को तो इसी का इंतजार रहता है। उनकी यही रोजी-रोटी है और यही धंधा।

जैसा कि विदित है कि इन सब घटनाओं से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब और मेहनतकश जनता को हुआ है जो रोजी-रोटी की तलाश में अपना घर-बार और शहर छोड़कर दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। वे महाराष्ट्र के बड़े शहरों मुम्बई के अलावा पुना और नागपुर जैसे शहरों में काम-धंधे के लिए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि राज ठाकरे के बयान से सेलेब्रटी और अमीर वर्ग को नुकसान नहीं हुआ है, नुकसान उनका भी हुआ है लेकिन वह नुकसान केवल बयान-बाजी तक ही रहा। कहना ठीक होगा कि यह माफीनामे तक ही रहा। इसे क्रिया और प्रतिक्रिया की तरह ले सकते हैं।

देश के इन मेहनतकश और कमाऊ जनता पर अब देश के नेता और राजनेता दोनों ही रोटियां सेकने पर मशगूल हैं। उन्हें तो एक मुद्दा मिल गया जिसका उन्हें हर चुनाव में इंतजार रहता है। वो गठबंधन की इस राजनीति को भली भांति जान गये हैं। सबको पता है कि लोकसभा चुनाव सामने है सेंक लो जितनी रोटियां सेंकनी हैं फिर कंहा ऐसा मौका मिलेगा ! यही उनके बीच चल रहा है।

ये राजनेता एक दूसरे पर छींटाकशी कस रहे हैं। उत्तर भारत के एक प्रख्यात नेता ने तो यहां तक कह दिया कि वे अब ‘निर्दलीय अभियान समिति’ बनाकर पूरे सूबे का दौरा करेंगे और अपना तथा अपनी पार्टी के विधायकों और सांसदों का इस्तीफा दे देंगें। एक दूसरे नेता ने तो राज ठाकरे पर फतवा तक जारी कर दिया। अलग-अलग तरह के नेता अलग-अलग तरह के बयान भी दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि वह महाराष्ट्रियों के खिलाफ नहीं है उन्हें तो सिर्फ राज ठाकरे को सबक सिखाना है।

महाराष्ट्र में भी एक अलग तरह की राजनीति शुरू हो गयी है। वहां के नेता भी बयानबाजी में पीछे नहीं हैं। कुल मिलाकर पूरे देश में आजकल मराठी-गैर मराठी, हिन्दी भाषी-गैर हिन्दी भाषी पर चर्चाओं का शोर है। इसका सीधा सा मतलब है वोट की राजनीति।

यह कहना अभी से ठीक नहीं होगा कि इस सस्ती और गंदी राजनीति से किसको कितना फायदा होगा मराठी नेताओं को या बिहारी या उत्तर भारतीय नेताओं को लेकिन इतना जरूर तय है कि इसके चक्कर में गरीब जनता जरूर पिस रही है और आगे भी यही होगा। बड़े बुर्जग सही ही कह गये हैं कि ‘गरीब की लुगाई, पूरे गांव की भौजाई’।

2 comments:

Unknown said...

फ़ायदा सिर्फ़ लालू को होगा, राज ठाकरे को नहीं… और यही मुख्य अन्तर साबित होगा महाराष्ट्र और बिहार में… :)

Sudhir K. Rai said...

Shishupal ji, ek bar phir apne vishya ko bade hi sanjidgi se uthaya hai. Wakai, kis tarah se aaj rajniti logo ko gumrah kar, vikas aur aam admi ki samasyayon ko nakar ka samaj ka vibhajan kar apna uloo sidha karne me lage hai.

apne bahut hi saral tarike se apni baat ko rakha..asha hai yeh kram jari rahega

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