इस हद तक गिर सकते लोग,
ऐसा सोचा नहीं कभी था!
देशप्रेम की भाषा गढ़कर,
आ जाते हैं घर पर चढ़कर,
सब झूठी खबरों को पढ़कर।
मार-पिटाई काम से बढ़कर,
ऐसा पहले नहीं कभी था...
हमने सोचा नहीं कभी था।
गाय हमारी माता कहकर,
भावनाओं में आते बहकर,
भीड़भाड़ में रह-रह रहकर,
मारो, मारो, मारो कहकर,
ऐसा देखा नहीं कभी था।
सोचा ऐसा नहीं कभी था।
इस हद तक गिर सकते लोग
ऐसा सोचा नहीं कभी था।
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