आज आनंद विहार बस अड्डे के बाहर कुछ गढ़वाली एक सुर में जोर से बोले, 'अब साले किसानों को खदेड़ खदेड़ कर यहाँ से भगाना चाहिए'। मैं उन्हें असहाय दुःखी मन से सुनता रहा। बड़े शहरों में छोटे छोटे गांवों के लोग खेतीबाड़ी न होने के कारण पलायन करते हैं, और छोटी, कम वेतन की नौकरियों से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इनमें से कुछ लोग जो बटाई खेती करने वाले घरों के बच्चे यदि थोड़ी बहुत उन्नति कर लेते हैं तो अपने को बड़ा तुर्रमखां समझने लगते हैं, वे शराब, कबाब में पैसा उड़ाने लगते हैं या झूठी शेखी बघारने के चक्कर में गांव में दिखावा करते हैं, ये लोग जब खेतिहर, मजदूरों की वाज़िब मांगों पे हंसी ठिठोली करते हैं तो उनपे तरस आता है...जबकि गाँव में उनके वालिद, बड़े बुजुर्ग जो कि बटाई खेत करने वाले हैं सोचते हैं जैसे तैसे ज़िंदगी कट जायेगी, लेकिन बड़े काश्तकार असल में समस्या से रूबरू हैं...लेकिन ज़्यादातर बड़े काश्तकारों के बच्चे सरकारी नौकरियों में हैं, या शहरों में नौकरी की तैयारी करते हैं और कभी न कभी उन्हें मेहनत से या पैसे ले देकर नौकरी मिल ही जाती है, इसलिए उन बच्चों को घंटा फर्क नहीं पड़ता खेतिहर की दुर्दशा पे...
...वर्तमान में दिल्ली में शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन में बड़े काश्तकार के साथ छोटे, मझोले काश्तकार भी शामिल हैं। लेकिन, सोशल मीडिया पे फेक एकाउंटधारी, न्यूज़ चैनल में सरकारी चमचे, रिहायशी इलाकों, जिनपे भारी भरकम लोन चढ़ा है, के निवासी, मेट्रो ट्रेन में युवा वर्ग जो इंजीनियरिंग आदि, बड़ी कंपनियों में बेगार करने वाले, पार्क में चूमचाटी करने वाले आवारा आदि से सुनते हुए पाया कि, असल किसान तो खेत में हैं, यहां तो विपक्षी राजनीतिक दलों के लोग हैं...पे हंसी आती है।
...खैर! लेकिन गणतंत्र दिवस पे उपद्रव में असल बाप के किसान शांति पूर्ण से अपना आंदोलन चलाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि, इसमें कुछ घुसपैठिए, धोखेबाज, शरारती, फरेबियों ने इसमें शामिल होकर पूरी किसान जमात को कलंकित कर दिया है औऱ शांतिपूर्वक चल रहे आंदोलन को पब्लिक के सामने मजाक औऱ गुस्से में बदल दिया है। सरकार, पुलिस, प्रशासन से गुजारिश है ऐसे उपद्रवियों को सख़्त से सख़्त सजा दे औऱ बेकसूर किसानों और शांतिपूर्वक आंदोलन करने वालों को परेशान न करे।
मुझे बेहद दुःख और तकलीफ़ होती है जब किसानों की बुराई सुनता हूँ, क्योंकि हम खेतिहर पहले हैं प्राइवेट नौकरी वाले बाद में। मैनें खेतिहर की मजबूरियों को देखा है, महसूस किया है। हमारे माँ बाप ने बड़े बड़े खेतों को बटाई जोत करके, दिन रात मेहनत की और हमें पढ़ाया लिखाया इसलिए जब खेतीबाड़ी, किसानों की बात जब आती है, भावुक हो जाता हूँ...। आज सभी किसानों को जब न्यूज़ एंकर, फिल्मी दुनिया के नचनिए बुरा बोलते हैं दुःख में सराबोर हो जाता हूँ! क्या करूँ!!!😢
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