रेल में है रेलपेल बड़ी भीड़ भारी है
एक-एक डिब्बे में अनगिनित सवारी हैं
बीस डिब्बा वाली ट्रेन एक-आध जनरल का
उस पर से आधा समझो सेना के कर्नल का
बैठे वाले खड़े नही जब तक हो पाएंगे
खड़े वाले जब तक न उतर कहीं जायेंगे
बाथरूम जाना भी एक तरह जंग है
कठिन काम समझो यदि जोरू भी संग है
बच्चे-बुजुर्गों पर बड़ी दया आती है
बाथरूम तक जाने की नौबत ही नही आती है
लालू को लिखा था डिब्बा बढ़ाने को
चला दिया गरीब रथ मजाक उडाने को
ममता जी तुम ही कुछ ममता दिखादो
एक और डिब्बा बस ट्रेन में बढ़ा दो
1 comment:
वाह शिशु भाई क्या बढ़िया कविता है।
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