Wednesday, February 3, 2010

बीत गया है अर्सा कितना उनसे बात नहीं होती

बीत गया है अर्सा कितना,
उनसे बात नहीं होती. 
होती भी तो कैसे होती,
मिलने पर अब जो रोती ..

हँसता चेहरा उसका भाता,
अब वो हंसी नहीं दिखती.
पहले पहल लिखे थे ख़त जो,
वैसे ख़त अब कम लिखती..

कभी कभी तो लगता ऐसा,
ख़ता हुयी थी मुझसे भारी.
प्रेम बढाया था मैंने ही,
भूल हुयी मुझसे सारी..

झूठ बोलना पहले उसका,
मुझको लगता था प्यारा.
पहले सब दुश्मन थे मेरे,
वो आँखों की थी तारा..

अब मिलती है सहमी सहमी,
जैसे मैं हूँ बहुत कठोर.
इसीलिये मैं भी कम मिलता.
पकड़ लिया दूजे का छोर..

3 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

रानीविशाल said...

Bahut sundar rachana...Shubhkamnae !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

aarkay said...

"प्रेम रुपी चश्मा कुछ होता ही ऐसा है .
सब कुछ हरा हरा दिखाता है "

सुंदर रचना !

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