Friday, November 29, 2013

देखा! सच! अजी हां!

देखा!
ज्ञान बांटने वाले-
कितने अत्याचारी हैं?
बाबा, लेखक, जज साबह भी
निकले सब व्यभिचाारी हैं।
बात पते की एक बताउं
सब-के-सब व्यापारी हैं।
ठगे गये 'शिशु' इनके हाथों
कैसी ऐ लाचारी है!

सच!
अबकी बार चुनाव मजे का
मुश्किल में सब नेता हैं।
सभी बोलते हम दिल्ली के
अबकी बार विजेता हैं।
वोटर है चालाक बहुत ही
सबके पर्चे लेता है।
अब 4 दिसम्बर पता चलेगा
किसको वोट वो देता है।

अजी हां!
कौन देखता है तुम बेंचो
मंहगा अपना माल,
प्याज के दाम घटा दो थोड़े
मंहगे करो टमाटर लाल
फंस जायेंगे सब-के-सब ही
फंको अपने तुम जाल
जनता है वेवकूफ बहुत ही
उसको होने दो बेहाल।।

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