मेरे जेहन में कुछ ऐसी यादे हैं जिन्हें चाहकर भी मैं नहीं भुला सकता। ये सभी यादाश्तें मेरे लिए बहुत ही डरावनी हैं और इनका मेरे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। पहली याद है जब मैं कोई 4 साल का था, पिताजी को उनके अपने ही चचेरे भाइयों ने खेती की जमीन के लिए लहूलुहान कर दिया था, उन्हें बैलगाड़ी से खेत से गांव की पुलिश चौकी पर लाया गया था। चूंकि मैं खेत पर अपनी किसान माँ के साथ मौजूद था, इसलिए उसी बैलगाड़ी पर बैठकर मैं भी आया था। माँ को रोते देखकर मैं भी रोने लगा था और बैलगाड़ी में मेरे बैठने का आनंद मातम में बदल गया था। आज भी वह दृश्य कई बार मेरे सामने आ जाता है। खेत पर मुकदमा अभी भी कायम है।
दूसरा, मंदिर। वैसे तो मेरे गांव में कई मंदिर हैं, लेकिन एक विशेष मंदिर में डर की वजह से मुझे आज भी मंदिरों से डर लगता है। यह वह मंदिर है जहाँ किसी व्यक्ति के सर को धड़ से अलग किया गया था। उनदिनों गांव में ऐसी घटनाएँ आम हुआ करती थीं। हालांकि मैंने यह देखा नहीं था। लेकिन लोगों से उसकी भयानक कहानी सुनकर कांप गया था। तब मैं कोई छः साल का रहा हूँगा। खेत पर मैं अपने दादा जी को शरबत पानी देने गया था। आने जाने का वही मंदिर वाला रास्ता था। जाते समय तो मुझे वह कहानी याद नहीं रही इसलिए चला गया, लेकिन, वापसी में मंदिर के आने से पहले ही अचानक मुझे कहानी याद आ गयी। मैं डर के मारे कांपने लगा। दूसरा रास्ता याद नहीं था, इसलिए वहीं रुककर किसी के आने का इंतज़ार करने लगा, लेकिन सुबह 11 बजे होने के कारण कोई वापस नहीं आ रहा था (उस समय किसान का खेत पर जाने का मतलब था या तो वह दोपहर को या शाम को वापस आएगा)। इसलिए मैंने फ़िर से खेत पर वापस जाने का मन बनाया। खेत तक जाने के लिए बम्बा (नाला) को पार करना ज़रूरी था। पहले जिस समय मैं गया था पानी नहीं था। लेकिन अब वह पूरे उफान था। जैसे ही मैंने नाला पार करना चाहा, पानी में बहने लगा। चिल्लाने की मतलब ही नहीं था, क्योंकि मैं डर गया था और सोच लिया कि अब मरना निश्चित है, तभी एक घसियार जिसका नाम लोचन था, ने मुझे बचा लिया। यह मंदिर आज भी गाँव में मौजूद है। उस दिन के बाद मुझे मंदिरों से हमेशा का लोभ जाता रहा। लोचन चाचा अब इस दुनियां में नहीं हैं।
तीसरी यादाश्त तब की है जब किसी भी बात को याद रखना कोई कठिन कार्य नहीं होता है। क्योंकि, उस समय मेरी उम्र कोई 9 वर्ष थी। चौथी कक्षा का रिजल्ट आ गया था। बरसात का मौसम आने वाला था या कहें कि कुछ कुछ बरसात होने भी लगी थी लेकिन स्कूल खुलने में अभी भी 15 दिन का समय था, इसलिए मैं अपनी मौसी के घर गया था। वहां एक दिन बरसात में भीगने की वजह से इतनी तेज बुखार आया कि मेरे बाएं कूल्हे में इतनी दर्द हुआ कि चलना दूभर हो गया। उस दिन के बाद से मैं सामान्य न होकर विकलांगता की श्रेणी में आ गया। अब याद नहीं आता कि मैं कभी भी दोनों पैरों पर सही से चला हूंगा। तब से आजतक मैं भले ही सही से नहीं चल पाया, लेकिन जिंदगी पटरी पर दौड़े जा रही है।
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