अब मेरी सुधि में तुम पथ पर
दीप जलाये मत रखना ।।
मैं सागर में खोयी नौका,
कब जाने किस छोर लगूँ ।
और तुम्हारा कुसुमित जीवन,
खिलकर फिर मुरझा जायेगा ।
माना, मन से मन के विनिमय
में, कुछ मोल नहीं चलता है ।
फिर तुम सा, मुझ जैसे को
पाकर भी क्या कुछ पायेगा ।।
यक्ष-प्रश्न जीवन के जितने
सुलझा पाओ, सुलझा देना ।
पर इन प्रश्नों मे ही जीवन,
तुम उलझाए मत रखना ।।
जिसके आगे भोर न होगी,
ऐसी कोई रात नहीं है ।
कौन घाव ऐसा जीवन का,
समय न जिसको भर पाया है ।।
जीवन खुशियों का मेला ही
नहीं, अपितु दुख भी सहने हैं ।
सबको मनचाहा मिल जाये,
यह संभव हो कब पाया है ।।
अपने हिस्से के सारे सुख,
जितने चुन पाओ चुन लेना ।
लेकिन मन में गिरह लगाकर,
दर्द पराये मत रखना ।।
-चन्द्रेश शेखर
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