Saturday, October 31, 2020

नज़्म

थक  गया  हूँ  मैं  पता कर, पता कर।
'अक़्ल  गई  चरने'  हमको सताकर।।

तेरे मुहल्ले में यदि सीसीटीवी लगे हैं,
तो  मेरे  मुहल्ले में आकर  ख़ता कर!

हल्की-सी-आहट से काँप जाता हूँ मैं,
दरवाज़ा-खटखटाना दोस्त बताकर!

आती  हैं  हिचकियाँ, कुछ रहम कर,
इतना  भी  न  मिरा  नाम  रटा  कर।

जाले  हटा  दिए हैं  सियासत के मैनें,
मेरी पोस्ट पढ़ो तुम 'चश्मा हटा कर'!

#नज़र_नज़र_का_फ़ेर #शिशु

No comments:

Popular Posts

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.

 रंग हमारा हरेरे की तरह है. तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है. करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं, लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं. ज़िंदगी अस्त व्यस्त ...