Tuesday, October 14, 2008

नासमझ कहीं का!

बचपन से एक कहावत सुनता चला आ रहा हूँ-‘‘पढ़िगै पूत कुम्हार के सोलह दूनी आठ’’। यह कहना गलत होगा कि कहावत में दम नहीं। कहावतें ऐसी नहीं बन गयीं। ऐसा सयाने लोग कहते हैं। जरूर ही कहावत में कोई न कोई गुप्त भेद छुपा होता है। सच्चाई छिपी होती है। कहने वाले यह भी कहते हैं कि इसका मतलब यह नहीं कि सभी कहावतों का मतलब निकलता ही हो। एक महायश ने कहा किसी भी काम में दो तर्क दिये जाते हैं- कोई भी काम मतलब को होता है और दूसरा उसी काम को बेमतलब का कहता है।

जाहिर है कि जो मैं यह लिख रहा हूँ कुछ लोगों के लिए बेमतलब की भी हो सकती है लेकिन मेरे लिए तो कम से कम मतलब की ही है। शायद उन लोगों को यह सुनकर भी अच्छा नहीं लगा होगा कि क्या बेमतलब की बात लिख रहा है। कहावत है-‘‘थूक और चाट’’। मतलब यह है कि गलत काम दुबारा नहीं होगा। यदि ऐसा नहीं किया तो खैर नहीं। इससे यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि गलती करने वाला इससे दुबारा गलती नहीं करेगा।

खैर इस बेमतलब और मतलब की बात पर बात करना तो वाकई बेमतलब है। इसका अंदाजा मुझे भी है। बात चल रही है मुहावरों की। तो जो ऊपर लिखा पहला मुहावरा है उसके बारे में मैने कुछ लोगों से विचार जाने, जिनमें कुछ लोग जाने माने हैं मतलब विद्वान लोग और कुछ अनजाने मतलब साधारण लोग बोलचाल की भाषा में कहें तो आम आदमी के विचार।

‘‘यह जरूर ही कुछ अनपढ़ लोगांे पर कहा गया होगा। जिसने भी यह कहा होगा वह अवश्य ही विद्वान होगा। नहीं, ऐसी बात नहीं, मेरा मतलब है कि जरूर विरोधी जाति का व्यक्ति रहा होगा जो उस अनपढ़ आदमी से जलता होगा। ऐसा भी हो सकता है कि वह ऐसा कहके उस व्यक्ति की भूल को सुधारना चाहता हो’’। यह कहने वाले थे स्वयं एक विद्वान, जो शायद या पक्की तौर पर प्रोफेसर थे। हां वही थे।

दूसरे व्यक्ति का नजरिया कुछ ऐसा था-‘‘शायद हिसाब-किताब में कुछ गड़बड़ी हो गयी होगी इसलिए बनिये ने यह कहा होगा। लेकिन इस लिए नहीं कि ‘वह व्यक्ति’ वास्तव में नासमझ था। बात यह थी बनिया ही उसे बेवकूफ बना रहा था।’’ यह धारणा आम आदमी की थी।

मेरी जागरूकता पता नहीं क्यों इस कहावत में इतनी ज्यादा बढ़ गयी। इसलिए मैं जाति से कुम्हार हूँ। लेकिन पेशे से नहीं। क्या यह भी बताना जरूरी था? जी हां इसलिए कि जाति और पेशे अलग-अलग दो बातें नहीं। नहीं, दो बातें ही हैं। कम से कम समाजशास्त्र की तो परिभाषा में तो यही आता

लोग कहते हैं कि कहावतें विद्वान मनुष्यों ने बनायी। जैसे ‘‘चोली दामन का साथ। सयाने लोग कहते हैं कि इसकी मतलब है बहुत गहरा रिश्ता। पर महोदय जब इसकी को कहेंगे कि चोली के पीछे क्या है। तब। समझो बात बिगड़ गयी। विद्वान लोग कहेंगे कि यह कहावत हो ही नहीं सकती। यह तो फूहड़ फिल्मी गाना है। जी हां। समझाओ जरा इसे यह कहावत कैसे बन गयी। अरे भाई इसमें भी तो चोली शब्द है। दूसरे ने तर्क दिया। क्या यह सुनकर गाली-गलौच और मार-पीट की नौबत नहीं आ सकती।

मैं भी क्या बेमतलब की बात लिखने लगा। मुझे तो बस यही समझना है कि उस उपरोक्त कहावत का मूल अर्थ क्या है। शायद यह मेरे लिए मतलब की बात है। यदि आपमें किसी को बेमतलब की बात लगी हो तो भी पढ़ना जरुर क्यूंकि यह जरुरी नहीं है कि यह आपके लिए भी बेमतल कि बात होगी!

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