‘गरीबी की रेखा एक ऐसी रेखा है जो गरीब के ऊपर से और अमीर के नीचे से गुजरती है।’ यह परिभाषा सैद्धांतिक भले न हो, व्यावहारिक और जमीनी तो जरूर है। गरीबी की रेखा के जरिये राज्य ऐसे लोगों को पहचानने की औपचारिकता पूरी करता है जो अभाव में जी रहे हैं। जिन्हें रोज खाना नहीं मिलता। जिनके पास रोजगार नहीं है। छप्पर या तो नहीं है या सिर्फ नाम भर का है। कपड़ों के नाम पर वे कुछ चिथड़ों में लिपटे रहते हैं। इन्हें विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा माना जाने लगा है। विडम्बना यह कि विकास का एक अहम् मापदण्ड भी यही है कि इन लोगों को गरीबी के दायरे से बाहर निकाला जाए। इसी दुविधा में संसाधन लगातार झोंके जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में इन गरीबों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने के लिए 45 हजार करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। पर अध्ययन बताते हैं कि निर्धारित लक्ष्य का केवल 18 से 20 प्रतिशत हिस्सा ही हासिल किया जा सका है।
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5 comments:
अच्छा लिखा है. आपका स्वागत है.
स्वागतम्।
विचारणीय पोस्ट...।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में गरीब तो गरीब ही रहता है लेकिन वह अमीर और अमीर हो जाता है जिसका संबंध गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के क्रियान्वयनों से होता है।
गरीबी की सर्वोचित परिभाषा रची है आपने गरीबी रेखा से नीची जीवन यापन करने वालों के लाभ के लिए खर्च की जाने वाली धनराशी अमीरों को अमीर बनाने के काम आती है आपका चिठ्ठा जगत में स्वागत है . मेरे ब्लॉग पर दस्तक देकर देखें अन्दर कैसे व्यंग और गीत रखे हैं
सराहनीय.
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