Friday, November 8, 2024

Modern ideology

I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes, such as the Muslim community now offering prayers using loudspeakers and the Hindu community beginning the tradition of Kanwar Yatra. Despite these shifts, people from all religions still enthusiastically participate in cultural programs like traditional plays, dramas, Ramleela, and Jagran, just as they always have.

Politically, people from both religious communities have generally followed different ideologies in the past and continue to do so. Additionally, there is a noteworthy point to add: the dominant castes, along with other backward castes and marginalized communities, each have their own distinct ideology. Even though they may support certain political figures, their ideological beliefs often differ from them. Ideology serves as the foundation of the vote bank in politics, but here, individualism often overshadows ideology.

Currently, a new aggressive phrase, "Bantenge to Katenge" (If we are divided, we’ll be hurt), has gained traction. In our context, this notion seems more likely to incite hostility based on caste rather than religion. Such an ideology already existed here to some extent, but the introduction of this new phrase could add fuel to the fire for those with similar mindsets. If this phrase becomes widely used, as it appears to be promoted through media, it might create a web of caste-based animosity rather than religious divides. This will likely hinder interaction and unity between backward castes and other groups, especially among aggressive individuals.

Modern ideologies have emerged and appealed to the youth, often drawing them towards these concepts. However, these ideological arguments have put the youth at greater risk than before. In earlier times, such words and phrases were analyzed in newspaper articles, but today, rather than focusing on meaningful discourse, the youth are drawn into trivial debates.

Disclaimer: This post is not intended to offend or hurt the sentiments of any particular caste or religion.

Date: October 8, 2024, Nagpur, Maharashtra, originally written Hindi for my social media friends 

Friday, July 19, 2024

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.

 रंग हमारा हरेरे की तरह है.

तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है.


करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं,

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.


ज़िंदगी अस्त व्यस्त हमारी आजकल,

हालात कुल रेन-बसेरे की तरह हैं.


बिछड़ गया है सहोदर मेरा मुझसे,

इंतज़ार रहता उसका सवेरे की तरह है.

नेवला सांप का दुश्मन है...

जिला हरदोई से डाभा गाँव जाने के लिए बस के बाद ऑटो करना पड़ता है. इस गाँव के निवासी उम्दा कहानीकार के साथ ही साथ कहावतें,  किदवंक्तियाँ, कही-सुनी, सुनी-सुनाई और गप्पें भी अच्छे से सूना लेते हैं. इस गांव के ज्यादातर लोग मुहावरें, लोकोक्तियाँ आदि में भी बात करते हैं, जैसे 'गोली मार दो, लेकिन बोली मत मारिओ', 'ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे' आदि आम बोलचाल की भाषा में प्रचलित हैं. यहाँ के निवासी मृदुभाषी, मिलनसार और मेहमान को सत्कार करने वाले हैं. 

इस बार इस गाँव से वापसी के समय ऑटो में ड्राइवर साहब से खूब सारी बातें करने का मौका मिला. मैं स्वयं को बातूनी समझता था लेकिन ये महाशय तो चार कदम और आगे निकले. तो हुआ ये गाँव से लौटते समय तालाब के पास एक नेवला हमारा रास्ता काट गया. उन्होंने फुर्ती से ऑटो रोका और जिधर वो भागा था उसकी तरफ भागे. मैं उन्हें उत्सुकता से देखने लगा. बाक़ी सवारियां मुझसे ज़्यादा समझदार थीं, उन्हें कोई फर्क न पड़ा. थोड़ी देर बाद वे जब चले तो मैंने कौतूहलवश पूछा, 'क्या था?' तो उन्होंने कुछ ये बयां किया:-

"नेवला सांप का दुश्मन है ये तो आप दूध का कर्ज फ़िल्म में देखकर समझ ही गए होंगे. लेकिन इसकी एक खूबी ये भी है कि ये मरे हुए साँप को दुबारा जिंदा कर देता है, इसके वो बूटी पता है, लेकिन आजतक कोई देख नहीं पाया कि वो बूटी कहाँ से लाता है, भले ही सांप के टुकड़े टुकड़े हो गए हों ये उसे जोड़ कर  ज़िंदा कर देता है. एक बार इसकी बूटी पता चल जाए तो लाखों लोगों का इलाज किया जा सकता है. जब भी मैं नेवला देखता हूँ, उसकी तरह जाकर देखता हूँ कि जड़ी बूटी तो नहीं खोद रहा. क्यूँकि हमारे गाँव में जड़ी बूटियों का भंडार है, पथरी, पुरानी से पुरानी बाबासीर, कब्ज, बदहजमी, पित्त, पीलिया, बिशेखा (कुत्ते बंदर के काटने के बाद वाली बीमारी), फोड़ा फुंसी, बुखार, काली खांसी आदि के लिए सब कुछ है यहाँ. लेकिन पुराने व्यक्तियों ने जानकारी लोगों तक साझा नहीं की इस वजह से अनेकों जड़ी बूटियों का पता नहीं है, हैं लेकिन मौजूद".

उन्होंने ऐसी ऐसी बीमारियों का नाम बताया जिन्हें जानकर दांतों तले उंगली दबाना पड़ा. अब आप उन्हें कहानीकार कह सकते हैं, जानकार कह सकते हैं, या गपोड़ी, लेकिन मेरी नज़र में व्यक्ति वे शानदार रहे

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