Friday, July 19, 2024

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.

 रंग हमारा हरेरे की तरह है.

तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है.


करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं,

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.


ज़िंदगी अस्त व्यस्त हमारी आजकल,

हालात कुल रेन-बसेरे की तरह हैं.


बिछड़ गया है सहोदर मेरा मुझसे,

इंतज़ार रहता उसका सवेरे की तरह है.

नेवला सांप का दुश्मन है...

जिला हरदोई से डाभा गाँव जाने के लिए बस के बाद ऑटो करना पड़ता है. इस गाँव के निवासी उम्दा कहानीकार के साथ ही साथ कहावतें,  किदवंक्तियाँ, कही-सुनी, सुनी-सुनाई और गप्पें भी अच्छे से सूना लेते हैं. इस गांव के ज्यादातर लोग मुहावरें, लोकोक्तियाँ आदि में भी बात करते हैं, जैसे 'गोली मार दो, लेकिन बोली मत मारिओ', 'ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे' आदि आम बोलचाल की भाषा में प्रचलित हैं. यहाँ के निवासी मृदुभाषी, मिलनसार और मेहमान को सत्कार करने वाले हैं. 

इस बार इस गाँव से वापसी के समय ऑटो में ड्राइवर साहब से खूब सारी बातें करने का मौका मिला. मैं स्वयं को बातूनी समझता था लेकिन ये महाशय तो चार कदम और आगे निकले. तो हुआ ये गाँव से लौटते समय तालाब के पास एक नेवला हमारा रास्ता काट गया. उन्होंने फुर्ती से ऑटो रोका और जिधर वो भागा था उसकी तरफ भागे. मैं उन्हें उत्सुकता से देखने लगा. बाक़ी सवारियां मुझसे ज़्यादा समझदार थीं, उन्हें कोई फर्क न पड़ा. थोड़ी देर बाद वे जब चले तो मैंने कौतूहलवश पूछा, 'क्या था?' तो उन्होंने कुछ ये बयां किया:-

"नेवला सांप का दुश्मन है ये तो आप दूध का कर्ज फ़िल्म में देखकर समझ ही गए होंगे. लेकिन इसकी एक खूबी ये भी है कि ये मरे हुए साँप को दुबारा जिंदा कर देता है, इसके वो बूटी पता है, लेकिन आजतक कोई देख नहीं पाया कि वो बूटी कहाँ से लाता है, भले ही सांप के टुकड़े टुकड़े हो गए हों ये उसे जोड़ कर  ज़िंदा कर देता है. एक बार इसकी बूटी पता चल जाए तो लाखों लोगों का इलाज किया जा सकता है. जब भी मैं नेवला देखता हूँ, उसकी तरह जाकर देखता हूँ कि जड़ी बूटी तो नहीं खोद रहा. क्यूँकि हमारे गाँव में जड़ी बूटियों का भंडार है, पथरी, पुरानी से पुरानी बाबासीर, कब्ज, बदहजमी, पित्त, पीलिया, बिशेखा (कुत्ते बंदर के काटने के बाद वाली बीमारी), फोड़ा फुंसी, बुखार, काली खांसी आदि के लिए सब कुछ है यहाँ. लेकिन पुराने व्यक्तियों ने जानकारी लोगों तक साझा नहीं की इस वजह से अनेकों जड़ी बूटियों का पता नहीं है, हैं लेकिन मौजूद".

उन्होंने ऐसी ऐसी बीमारियों का नाम बताया जिन्हें जानकर दांतों तले उंगली दबाना पड़ा. अब आप उन्हें कहानीकार कह सकते हैं, जानकार कह सकते हैं, या गपोड़ी, लेकिन मेरी नज़र में व्यक्ति वे शानदार रहे

Friday, February 11, 2022

Internship

After learning typing from Hardoi and completing my graduation, I went to Meerut with the enthusiasm that I would get a job easily in a private company or a factory. I had a lot of faith in my cousins that they would help me search for a job. He had a lot of respect at the petrol pump where he used to work. Rich people used to come there to fill petrol in their car.. One week passed and I was sitting vacant, there was no job anywhere. Due to despair, I cried alone near a small Pan shop and remembered my village. There was a tantrik who was sitting in a nearby petrol pump. While rubbing the hands of poor women, seeing their lines, the predictor would have felt very pitiful., because many times a day no judge comes. I got very angry and surprised why poor people are wasting their valuables in such a faith. The poor, sly person would somehow make arrangements to fill his stomach.

About fifteen days passed and I lost my hopes and was thinking about returning to my village. Suddenly the same day a clerk who was working in a company which was famous for printing electricity bills came over there. He used to get a drop of petrol from my cousin. My brother called me and said that your work has been arranged since yesterday. This was my first internship.

The very next day, I went on time to the company wearing a freshly red shirt, with a lunch box as I was punctual from my hostel days so I reached some time before there. I saw the private guard for the first time, he had a double gun in his hand and a very strong mustache, threatened me and said, back, sir is about to come, then after taking down the lead of the car, sir shouted at the guard from behind, what are you doing, cannot stand in one place, quickly open the door. The guard was staring at me and as soon as the sahib left I felt that the anger would be given to me. Then that clerk came and asked why Ram Babu you are not allowing this boy inside, he will work for me. I understood the meaning of the guard's gun, in front of him there were all the sahib and babu lions and he was a puppy. Later, after some days he told me that he is Yadav from Shahjahanpur and retired from the army. I was treated well after knowing that I am from his neighbour district.

I saw a private office for the first time. There were luxurious chairs, large tables, a clean kitchen, great bathroom, and sofas. This office was tendered for printing of electricity bills by the Government of Uttar Pradesh. My eyes were dazzled at the sight of the big printer. The people working here used to work more than one sly, useless, dastardly, swaggering pigs in front of the boss. In one of them was the senior clerk. This was a Meerutiya Srivastava, with a chubby stomach, a clean beard who looked like a black bull. He used to wear neat suits and well-polished shoes. Apart from paan and cigarettes, Babu Saheb was very fond of alcohol, used to come drunk even during the day and when he used to call his wife from the landline after drinking, his wife would scold him a lot. One of the assistants there once told me that his wife looks like a duck. Then he told me in my ear, instructing me that if I told the things told by him to anyone, then he would get me fired from the job because Bade Babu's wife doesn't give him attention and has affairs with an Engineer who looks after maintenance work here and in Delhi. When I did not laugh at his words, he threatened me and threatened to take a look after office hours.

Well, as soon as I entered the company on the first day of my job, I thought I would get a clerkship here but it happened, on the very first day I was forced to wash the glass. My main job was to heat the food in the afternoon and serve it on a plate and after eating it, bring fresh paan from the shop. After serving tea and water, I used to fold the paper in front of the printer. One I have informed my boss that I I know typing. When I see the retired uncles doing corrections on the bill by wearing thick glasses, I feel sad, shall I assist him? He got angry after hearing this and gave me such a lecture that my tears started flowing. I worked there for a total of 4 months, but I don't know what I learned there. My typing speed would also have been lost if that old, retired, uncle who played harmonium in Jagrate had not got me put in the feeding of voter list on the computer in Mohanpuri. Five days after I got my job, he slept forever at a Jagran Party. I always remember him. This was the turning point of my life.

(I have written my story in Hindi and have tried to translate it into English, please forgive me if there are grammatical mistakes as I am trying to learn English and this is my year target)

हरदोई से टाइपिंग सीखने के बाद मैं इस उत्साह से मेरठ गया कि, किसी प्राइवेट कंपनी या फैक्ट्री में आसानी से नौकरी मिल जाएगी। मुझे अपने चचेरे भाइयों पर बहुत भरोसा था कि वे कहीं न कहीं लगवा देंगें। जिस पेट्रोल पंप पर वे नौकरी करते थे वहां उनका काफी मान सम्मान था। बड़े बड़े कार वाले लोग वहां पेट्रोल भरवाने आते थे। मैं एक हफ्ते से खाली बैठा था, कहीं भी जॉब न लग रहा था। निराशा के कारण main जाकर पान की गुमटी के बगल में रो लेता। कभी रवींद्र भैया के अंगूठी की दुकान पर बैठता। उनके पड़ोस में बैठे फर्जी तांत्रिक के टटके टोने देखता। गरीब औरतों के हाथों को मसलते हुए उनकी रेखा देखकर भविष्यवाणी करने वाले पे बहुत तरस आता, क्योंकि दिन में कई बार कोई जजमान ही नहीं आता। वो बेचारा, धूर्त किसी प्रकार अपने पेट भरने का इंतजाम करता।

लगभग 15 दिन बीत गए, हौसला जवाब दे गया, गांव लौटने की सोच ही रहा था कि अचानक एक दिन पेट्रोल पंप पर एक बाबू आ टकराया। ये बाबू बिजली का बिल छापने की कंपनी में काम करता था। भाई से कुछ एक बूंद फ्री में भरवा लेता था। मुझे बुलाकर भाई ने कहा कल से तुम्हारा काम पक्का हो गया है। ये तुम्हें वहां काम सिखाएंगें और कुछ खर्च के लिए पैसे भी मिलेंगे। ये मेरी पहली इंटर्नशिप थी।

अगले ही दिन हौसले से भरपूर, खाने का डब्बा, और भाई की लाल शर्ट जोकि काफी झोलदार थी, पहनकर समय से पहले पहुँच गया। प्राइवेट गार्ड पहली बार देखा था, उसके हाथ में दुनाली बंदूक थी और खूब रौबदार मूंछे थी, मुझे धमकाकर बोला, पीछे हट, साहब आने वाले हैं, तभी कार का सीसा नीचे उतारकर गार्ड पर पीछे से साहब चिल्लाया, क्या कर रहा है बे, साले, एक जगह खड़ा नहीं रह सकता। इधर उधर क्या बातें बना रहा है। जल्दी कर। गार्ड मेरी तरफ आंखें ततेर रहा था और साहब के जाते ही मुझे लगा कि झाड़ पिलाएगा। तभी वो क्लर्क आ गया और बोला, और राम बाबू इस लड़के को क्यों अंदर नहीं जाने दे रहा। मेरे साथ काम करेगा ये। मुझे गार्ड की बंदूक का मर्म समझ मे आ गया था, उसके सामने वहां सभी साहब और बाबू शेर थे और वो पिल्ला। बाद में पता चला वो शाहजहांपुर के यादव जी थे, सेना से रिटायर्ड, जिनका बाद मेरे साथ व्यवहार ठीकठाक ही रहा।

मैनें पहली बार प्राइवेट ऑफिस देखा था। शानदार कुर्सियां, बड़ी बड़ी मेजें, साफ सुथरा किचन, शानदार बाथरूम, और बैठने के लिए सोफे थे। यहां कम्प्यूटर पर बिजली के बिल की डाटा एंट्री होती थी (यहाँ बड़े लेवल पर फेरा फेरी होती थी, ये कहानी किसी दिन बाद में)। इतने बड़े बड़े प्रिंटर देखकर आंखें चौंधिया गईं। यहां काम करने वाले एक से बढ़कर एक धूर्त, निकम्मे, कामचोर, बॉस के आगे खींसे निपोरने वाले सुवर काम करते थे। इन्हीं में से एक था हमारा बड़ा बाबू। ये थुलथुल पेट वाला, दाढ़ी मूछे सफाचट, काइंया सा दिखने वाला एक मेरठिया श्रीवास्तव था। ये साफ सुथरे सूट और खूब पॉलिस किए हुए जूते पहनता था। बाबू साहब पान और सिगरेट के अलावा शराब का बेहद शौकीन था, दिन में भी पीकर आ जाता था और पीकर जब लैंडलाइन से बीबी को फोन करता तो उसे उसकी बीबी खूब डांट पिलाती। वहाँ के एक सहायक ने मुझे एक बार ये कहते हुए बताया कि उसकी बीबी बहुत बड़ी छमकछल्लो है। फिर उसने मुझे ये हिदायत देते हुए कि यदि मैनें उसकी बताई बातें किसी को भी बताई तो वो मुझे नौकरी से निकलवा देगा, उसने मेरे कान में बताया कि, "बड़े बाबू की बीबी उसे घास नहीं डालती है और उसका दिल्ली से हफ्ते में एक बार आने वाले कम्प्यूटर इंजीनियर, जो कि यहां कम्प्यूटर का रखखाव देखता है, बड़े बाबू को काम में उलझाकर उसकी बीबी के साथ गुलछर्रे उठाता  है।" जब मुझे उसकी बात पर हंसी न आई तो उसने मुझे धमकाया और देख लेने की धमकी दी।

ख़ैर, जॉब के पहले दिन कंपनी में घुसते ही मुझे लगा था मुझे यहां क्लर्की मिल जाएगी। लेकिन हुआ ये, पहले ही दिन मुझे ग्लास धोने पर लगा दिया गया, दोपहर में खाना गर्म करके प्लेट में सर्व करना तथा खाने के बाद दुकान से ताजे पान लगवाकर लाना मेरा मुख्य काम था। चाय पानी देने से जब फुर्सत मिलती प्रिंटर के सामने पेपर फोल्ड करता। मैनें एक बार उस अड़ियल बाबू से कहा सर मुझे टाइपिंग आती है। मैं इन रिटायर्ड अंकल को जब मोटा चश्मा लगाकर बिल में करेक्शन करते देखता हूँ तो दुख होता है, क्या मैं उनका हाथ बटा दिया करूँ, वो इतना सुनकर झल्ला गया और मुझे ऐसा लेक्चर दिया कि मेरे आँसू झर झर बहने लगे। मैनें वहां कुल 4 महीने काम किया क्या सीखा पता नहीं, अच्छी खासी टाइपिंग स्पीड भी चली जाती यदि उन बूढ़े रिटायर्ड, जगराते में हारमोनियम बजाने वाले अंकल ने मोहनपुरी में कम्प्यूटर पर वोटर लिस्ट की फीडिंग में न लगवा दिया होता, मेरी नौकरी लगवाने के पांच दिन बाद वे एक जगराते में माता के जागरण में हमेशा के लिए सो गए। उन्हें मेरा नमन है।

Saturday, January 8, 2022

नींद आती है बशर्ते...



नींद आती है बशर्ते, करार नहीं आता है।
हमारी ज़िंदगी में इतवार नहीं आता है।।

बेवजह की बहस बेग़म से करता क्यों है?
ग़ुलाम बनकर क्यूँ हार नहीं जाता है!

ध्यान रखना शाही रोगों से ए-दोस्त मेरे!
खाँसी चली जाती है, बुखार नहीं जाता है।

उससे मिलकर अच्छा भी लगता है बुरा भी,
क्यूँकि, महीनों हफ़्तों  ख़ुमार नहीं जाता है।

दरम्यान-ए-दिल्ली में एक से बढ़कर एक हैं,
बुजदिन नज़र आता है पर खुद्दार नहीं आता है।

जिधर हाँकोगे, उधर चल देगी रियाया हुजूर,
गधा चला देगा लेकिन, कुम्हार नहीं जाता है।

#नज़र_नज़र_का_फ़ेर #शिशु 

Wednesday, January 27, 2021

अफ़सोस!

आज आनंद विहार बस अड्डे के बाहर कुछ गढ़वाली एक सुर में जोर से बोले, 'अब साले किसानों को खदेड़ खदेड़ कर यहाँ से भगाना चाहिए'। मैं उन्हें असहाय दुःखी मन से सुनता रहा। बड़े शहरों में छोटे छोटे गांवों के लोग खेतीबाड़ी न होने के कारण पलायन करते हैं, और छोटी, कम वेतन की नौकरियों से अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इनमें से कुछ लोग जो बटाई खेती करने वाले घरों के बच्चे यदि थोड़ी बहुत उन्नति कर लेते हैं तो अपने को बड़ा तुर्रमखां समझने लगते हैं, वे शराब, कबाब में पैसा उड़ाने लगते हैं या झूठी शेखी बघारने के चक्कर में गांव में दिखावा करते हैं, ये लोग जब खेतिहर, मजदूरों की वाज़िब मांगों पे हंसी ठिठोली करते हैं तो उनपे तरस आता है...जबकि गाँव में उनके वालिद, बड़े बुजुर्ग जो कि बटाई खेत करने वाले हैं सोचते हैं जैसे तैसे ज़िंदगी कट जायेगी, लेकिन बड़े काश्तकार असल में समस्या से रूबरू हैं...लेकिन ज़्यादातर बड़े काश्तकारों के बच्चे सरकारी नौकरियों में हैं, या शहरों में नौकरी की तैयारी करते हैं और कभी न कभी उन्हें मेहनत से या पैसे ले देकर नौकरी मिल ही जाती है, इसलिए उन बच्चों को घंटा फर्क नहीं पड़ता खेतिहर की दुर्दशा पे...

...वर्तमान में दिल्ली में शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन में बड़े काश्तकार के साथ छोटे, मझोले काश्तकार भी शामिल हैं। लेकिन, सोशल मीडिया पे फेक एकाउंटधारी, न्यूज़ चैनल में सरकारी चमचे, रिहायशी इलाकों, जिनपे भारी भरकम लोन चढ़ा है, के निवासी, मेट्रो ट्रेन में युवा वर्ग जो इंजीनियरिंग आदि, बड़ी कंपनियों में बेगार करने वाले, पार्क में चूमचाटी करने वाले आवारा आदि से सुनते हुए पाया कि, असल किसान तो खेत में हैं, यहां तो विपक्षी राजनीतिक दलों के लोग हैं...पे हंसी आती है।

...खैर! लेकिन गणतंत्र दिवस पे उपद्रव में असल बाप के किसान शांति पूर्ण से अपना आंदोलन चलाने का प्रयास कर रहे थे, जबकि, इसमें कुछ घुसपैठिए, धोखेबाज, शरारती, फरेबियों ने इसमें शामिल होकर पूरी किसान जमात को कलंकित कर दिया है औऱ शांतिपूर्वक चल रहे आंदोलन को पब्लिक के सामने मजाक औऱ गुस्से में बदल दिया है। सरकार, पुलिस, प्रशासन से गुजारिश है ऐसे उपद्रवियों को सख़्त से सख़्त सजा दे औऱ बेकसूर किसानों और शांतिपूर्वक आंदोलन करने वालों को परेशान न करे। 

मुझे बेहद दुःख और तकलीफ़ होती है जब किसानों की बुराई सुनता हूँ, क्योंकि हम खेतिहर पहले हैं प्राइवेट नौकरी वाले बाद में। मैनें खेतिहर की मजबूरियों को देखा है, महसूस किया है। हमारे माँ बाप ने बड़े बड़े खेतों को बटाई जोत करके, दिन रात मेहनत की और हमें पढ़ाया लिखाया इसलिए जब खेतीबाड़ी, किसानों की बात जब आती है, भावुक हो जाता हूँ...। आज सभी किसानों को जब न्यूज़ एंकर, फिल्मी दुनिया के नचनिए बुरा बोलते हैं दुःख में सराबोर हो जाता हूँ! क्या करूँ!!!😢

Wednesday, November 4, 2020

हमारे और तुम्हारे मोहल्ले में इतना सा ही अंतर है...

हमारे और तुम्हारे मोहल्ले में इतना सा ही अंतर है...

तुम्हारे मोहल्ले में  कबाड़ी बहुत हैं।
हमारे मोहल्ले में  जुगाड़ी  बहुत हैं।।

हमारे मोहल्ले में सबको ख़बर है-
तुम्हारे मोहल्ले में अनाड़ी बहुत हैं।

दुकानदार हमारे मोहल्ले का कहता-
तुम्हारे मोहल्ले पे उधारी बहुत है।।

ताश की गड्डी हमारे मोहल्ले की है।
तुम्हारे मोहल्ले में जुआरी बहुत हैं।।

तुम्हारे मोहल्ले में  बंदर-बंदरिया हैं।
हमारे  मोहल्ले में  मदारी  बहुत हैं।।

हमारे  मोहल्ले  में  चिंता  न फ़िक्र।
तुम्हारे मोहल्ले में दुनियादारी बहुत है।

हमारा मोहल्ला अब शोहदों से मुक्त।
तुम्हारे मोहल्ले में 'पटवारी' बहुत हैं।😊

#नज़र_नज़र_का_फ़ेर #शिशु

Tuesday, November 3, 2020

अब मेरी सुधि में तुम पथ पर दीप जलाये मत रखना ।।

अब मेरी सुधि में तुम पथ पर 
दीप जलाये मत रखना ।।

मैं सागर में खोयी नौका,
कब जाने किस छोर लगूँ ।
और तुम्हारा कुसुमित जीवन,
खिलकर फिर मुरझा जायेगा ।
माना, मन से मन के विनिमय
में, कुछ मोल नहीं चलता है ।
फिर तुम सा, मुझ जैसे को
पाकर भी क्या कुछ पायेगा ।।

यक्ष-प्रश्न जीवन के जितने 
सुलझा पाओ, सुलझा देना ।
पर इन प्रश्नों मे ही जीवन, 
तुम उलझाए मत रखना ।।

जिसके आगे भोर न होगी,
ऐसी कोई रात नहीं है ।
कौन घाव ऐसा जीवन का,
समय न जिसको भर पाया है ।।
जीवन खुशियों का मेला ही
नहीं, अपितु दुख भी सहने हैं ।
सबको मनचाहा मिल जाये,
यह संभव हो कब पाया है ।।

अपने हिस्से के सारे सुख,
जितने चुन पाओ चुन लेना ।
लेकिन मन में गिरह लगाकर,
दर्द पराये मत रखना ।।

-चन्द्रेश शेखर

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