Friday, October 17, 2008

हम शर्मिंदा हैं कि---

अभी हाल ही मैं मैंने एक फिल्म देखी, आतंकवाद के लिहाज से यह फिल्म काफी चर्चित है। शायद आप समझ गये होंगे फिल्म का नाम है -a wednesday. फिल्म में दिखाया गया है एक आदमी की जिंदगी आतंकवाद और दहशतगर्दी से परेशान है।

फिल्म काफी अच्छी है। इस फिल्म पर एक बात मैने से गौर की वह यह कि वह आदमी जब डायलॉग बोलता कि कोई मादर... हमारे घर में घुस कर हमें मारे और हम चुपचाप तमाशा देखते रहें। यह एक बहु-चचिर्त गाली है जो गांव-कस्बों से लेकर शहरों तक आम है। मैं बात कर रहा हूं कि कोई मादर.... ही क्यों क्या कोई गांडू नहीं कहा जा सकता था। लेकिन नहीं क्योंकि फिल्म पर तब वह डायलॉग शायद उतना नहीं अच्छा लगता। यह मेरी नहीं यह आम राय है।

आज महिला सशक्तिकरण का दौर हैं महिलाएं अपने अधिकारों और हक के लिए लड़ाई लड़ रही है। हजारों की संख्या में महिला शसक्तिकरण पर स्वयं सेवी संस्थाएं काम कर रही हैं। संसद में महिला आरक्षण बिल पर बहस चल नही है। लेकिन क्या ये गाली-गलौच की भाषा, जो पुराने समय से महिलाओं पर बनी है, रोक लग पायेगी कहना कठिन है। महिलाएं सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से हमेशा से ही पिछड़ी रही हैं! यह सब तो तभी रूक सकता है जब तक महिलाएं शैक्षिक दृष्टि से एक उचित समान-स्तर प्राप्त नहीं कर लेतीं। इतना ही नहीं समाज के सभी वर्गों की सामाजिक सोच जब तक नहीं बदलती तब तक यह कह पाना कि इन गालियों पर रोक लग पायेगी सम्भव नहीं है।
हम तो बस यहीं कहेगें कि हम शर्मिंदा हैं।

3 comments:

Shuaib said...

शायद फिल्म की कहानी के मुताबिक़ गाली ज़रूरी रही होगी लेकिन अभी तक मैं ने ये फिल्म नहीं देखा।

http://shuaib.in/chittha

makrand said...

ok dear
keep on writing
regards

My CV said...

गली का क्या है और भी बहूत कुछ दिखाते है लोग फिल्मो मैं फिल्मो का क्या है! कल फ़िल्म देखना मातृभूमि फ़िर बताना !

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