Tuesday, January 6, 2009

'शिशु' की यही है आश न हो जाडे से दूरी

मौसम परिवर्तित हुआ जाडा बढ़ता जाए

इसी दौर में शादी के फिर कार्ड बहुत घर आए

कार्ड बहुत घर आए निमंत्रण आते रहते

आयेंगे श्रीमान, यही हम गाते रहते

मौका जब भी मिल जाता हम जाते रहते

भले पेट में जगह बचे न खाते हम रहते

जाडा यूँ चलता रहे यही दुआ भगवान्

इसी तरह हम अगले बरस बने बहुत मेहमान

बने बहुत मेहमान प्रभु जी विनती मेरी

'शिशु' की यही है आश न हो जाडे से दूरी

2 comments:

Anonymous said...

पेट आपका है नगरपालिका का नहीं, ध्यान रखें. वैसे हमारे एक बड़े परिवार वेल मित्र आती प्रसन्न हैं इन दीनो. रोज निकल पड़ते हैं, अपने बेटे बेटी बहू बच्चों के साथ. उनका कहना भी रहता है १०१ रुपये में आठ लोगों का स्वरुचि भोजन.

Unknown said...

sahi hai....mast hoke enjoy kijiye

Popular Posts

Modern ideology

I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes...