Tuesday, December 15, 2009

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,

कौन है देशी कौन विदेशी अब ये चर्चा करता कौन,
माल विदेशी सभी खरीदें उस खर्चे पर सब मौन।

क्रिकेट विदेशी खेल कभी था अभी देश का है सिरमौर,
इंग्लिश बोली सुनो विदेशी लेकिन अभी उसी का दौर।

पेप्सी-कोला सभी विदेशी फिर भी पीते देशी लोग,
पीजा बर्गर क्या देशी हैं? उसका सभी लगाते भोग।

जींस और पतलून विदेशी लगे विदेशी पहनावा,
हिन्दुस्तानी कहलाते हम कैसा भी हो पहनावा।

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,
कहते हैं शिशुपाल सुनो जी अब का दौर गुज़ारों का।

6 comments:

अजय कुमार झा said...

क्या बात है शिशुपाल जी ..कलम की धार ्खूब तेज है ............बढिया है ..लिखते रहें

vikas mehta said...

bhaut khoob ye bairo ka desh hai sunta kon hai bhai

शरद कोकास said...

बिलकुल जनगीत का अन्दाज़ है ..।

Randhir Singh Suman said...

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,
कहते हैं शिशुपाल सुनो जी अब का दौर गुज़ारों का।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया रचना है।बधाई।

कौन है देशी कौन विदेशी अब ये चर्चा करता कौन,
माल विदेशी सभी खरीदें उस खर्चे पर सब मौन।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जमाने की नब्ज को आपने बखूबी पहचाना है।

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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?

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