Tuesday, November 8, 2011

अन्ना ना तेरे हैं, ना मेरे हैं, अन्ना को अब सब घेरे हैं...

ना तेरे हैं, ना मेरे हैं,
अन्ना को अब सब घेरे हैं...

इधर मीडिया बोल रही है 
अन्ना सच्चे गांधीवादी. 
उधर मीडिया बोल रही है 
अन्ना ही असली बरबादी

भ्रष्टाचार मिटेगा पूरा-  
सच! अन्ना टीम बोलती है.
उधर मीडिया अन्ना टीम का
सच! सच में भेद खोलती है.

'शशि शेखर'* 'शिशु' बोल रहे हैं 
अन्ना हुए सियासी हैं.
कांग्रेसी के दिग्गी-दिग्गज 
बोले अन्ना बासी हैं. 

अन्ना की अनचाही टीम 
अन्दर-अन्दर टूट रही.
जिसको नहीं मिला पद-पदवी 
वो अन्ना से रूठ रही.

भ्रष्टाचार ख़तम होगा क्या? 
क्या राम रज्य आ जाएगा?
या यह भ्रष्ट व्यस्था ही 'शिशु' 
अन्ना को खाजेगा
सोचा आज सवेरे है 
ना तेरे हैं, ना मेरे हैं,
अन्ना को अब सब घेरे हैं...

*हिन्दुस्तान के सम्पादकीय लेख में दिनाक ६ नवम्बर को छपे शशि शेखर के लेख से ...अच्छा हो अन्ना सियासी लोगों की भाषा छोड़ नयी पीढी को सदाचार और संस्कार के आन्दोलनों को आगे बढ़ाएं..  

Thursday, June 30, 2011

वाह! क्या है खूबसूरत! बादलों का ये नजारा.


वाह! क्या है खूबसूरत
बादलों का ये नजारा
कर रही थी झील आकर
पास में मेरे इशारा.

झील जो इस पार से 
और जो उस पार से 
जीतती है दिल हमारा 
अपने गहरे प्यार से

फूल स्वागत कर रहे हैं 
खिलखिलाते जोर से 
और बारिश खींचती है  
ध्यान अपने शोर से 

हैं वृक्ष ऊँचे ओक के 
जो दे रहे आशीष हैं 
झील के नजदीक ही  
देखो खड़े प्रभु ईश हैं

है भाप बनती दीखती 
जो ध्यान बरबस खींचती 
वो भाप ही फिर गरजकर 
है प्रकृति उपवन सींचती 

है धूप पल में छाँव भी 
है सर्द सा एहसास भी 
है दूर लेकिन लग रहा
ये है हमारे पास ही  

गीत और संगीत, गायक  
और रचनाकार भी 
गा रहे हैं गीत पंक्षी
है बांस की झंकार भी 

है कौन जो ये प्राकृतिक 
है चित्रकारी कर रहा 
या कल्पना आकर में 
फिर रंग सारे भर रहा 

है बादलों के बीच बैठा 
छुप, 'छुपा-रुस्तम' कहें 
'शिशु'  निरंकारी या उसे 
'शिव' 'सुन्दरम' 'सत्यम' कहें

Saturday, June 18, 2011

शादी हुयी बन गयी पत्नी, पति-पत्नी का दर्जा पाया, पर सुहागरात से पहले....

शादी हुयी बन गयी पत्नी
पति-पत्नी का दर्जा पाया
पर सुहागरात से पहले 
पत्नी ने पति को समझाया- 
शादी हुयी बहुत पहले ही
मैं हूँ एक सुहागिन नारी
भईया तुम बन जाओ मेरे 
मैं पहले वाले की प्यारी
सुनकर पति मगन हो बोला-
बहन कहानी में है ट्विस्ट
खबर हुयी ये ख़ास मीडिया 
वाले करते इसको मिस्स्ड 
रस्मे जैसे पहले हमने 
दोनों साथ निभाई थी 
एक रस्म दो और अदा कर 
राखी आज मंगाई थी
प्रणय सूत्र के बंधन से 
है रक्षाबधन अच्छा 
बहन आपने बचा लिया 
है प्यार आपका सच्चा
है प्यार आपका सच्चा

Thursday, June 16, 2011

बीडी के संग चाय ... है दैया हाय....


बीडी के संग चाय
... है दैया हाय....
बाबा बोले मुझसे आज-- 
गर्मी में पीना पन्ना... 
नहीं मिले तो गन्ना...
भ्रष्टाचार विरोधी हो जा  
बाबा के संग या संग अन्ना
या बन जा सरकारी बाबू
धनवानों संग धन्ना...
जीवन-मरण समझ ले मूरख
जीवन है ये झन्ना....
बाबा जी की बातें यारों 
शिशु को नहीं हैं भाय 
बीडी के संग चाय
... है दैया हाय....

Friday, May 20, 2011

शराब चाहे कच्ची हो या पक्की इसके नुक्सान तो हैं और वो भी जानलेवा.


ऐसा कहा जाता है कि गावों में कच्ची शराब का धंधा कुटीर उद्योग के रूप में चलता है, कच्ची शराब की भट्ठियां धधकने का कारण बढ़ती बेरोजगारी और कम लागत में अधिक लाभ कमाना है! बेरोजगारी से जूझ रहे जिलों में तो कच्ची शराब का कारोबार अब कुटीर उद्योग का रूप अख्तियार कर चुका है और पेट की आग बुझाने के लिए लोग गाव-गाव में कच्ची शराब की भट्टिया धधका रहे। ग्रामीण अंचलों में कुछ लोगों का ये धंधा इतना ज्यादा फल फूल रहा है कि वे इसे रोजगार का जरिया बना बैठे हैं.  इस धंधे के फलने और फूलने कारण कम खर्च में अच्छा नशा होना है जिससे ग्रामीणों में कच्ची शराब के प्रति लगाव भी बढ़ रहा है। 
कुछ लोग कच्ची शराब का व्यवसाय इसलिए भी करते हैं कि इसमें लेबलिंग और ब्रांडिंग के खर्चे नहीं उठाने पढ़ते, विज्ञापन और मीडिया का काम अखबार खुद-ब-खुद आहे-बगही खबर छाप कर करता रहता है. ज्यादातर ग्रामीण आबादी नदियों के किनारे बसे होते हैं जिससे उन्हें शराब की भट्ठियां स्थापित करने में ज्यादा खर्च भी नहीं उठाना पड़ता. 
आर्थिक जानकारों का मानना है कि जहां कच्ची शराब का धंधा चल रहा होता है वे इलाके आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं. पुलिस और सरकारों की माने तो कच्ची शराब के चलते अपराधों में भी अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होती है. 
लेकिन गाँव-देहात वासियों का कहना इस मंहगाई में वे ब्रांडेड शराब नहीं खरीद सकते, और शराब के बिना - शादी, मुंडन, लगन आदि काम अधूरे माने जाते हैं. यहाँ तक कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की मांग है कि सरकार को महीने में कम से कम एक बार सस्ते अनाज की तरह एक इंग्लिश शराब की बोतल भी देनी चाहिए. 

कच्ची शराब पर आये दिन अखबार अपने - अपने आंकड़े छापते रहते हैं-
  • यूपी में सामान्य दिनों में इसकी खपत करीब दो लाख लीटर रोजाना, होली में चार लाख लीटर तक पहुंच जाती है 
  • कच्ची शराब की बिक्री बढ़ने का एक बड़ा कारण अंग्रेजी और सरकारी ठेके की शराब से इसका दाम कम होना है 
  • विधानसभा में हाल ही में सरकार ने भी माना था कि जहरीली शराब पीने से पिछले साल 87 लोगों की मौत हुई थी
  • उत्तर प्रदेश राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक(कानून-व्यवस्था) बृजलाल  ने कहा कि अधिकारियों से कहा गया है कि अगर जिले में कच्ची शराब का सेवन करने से एक भी मौत होती है तो उसके लिए थाना प्रभारी से लेकर पुलिस अधीक्षक तक की जवाबदेही होगी।

इतना तो तय है कि शराब चाहे कच्ची हो या पक्की इसके नुक्सान तो हैं और वो भी जानलेवा. 

बिन बुलाये मेहमान पधारे, घर में ना था पानी

बिन बुलाये मेहमान पधारे, घर में ना था पानी 
बीबी रूठ गयी फिर मुझसे, बोली कड़वी बानी. 
ओ गंवार! ये गाँव नहीं है कुछ तो ख्याल किया होता
मेहमानों से पहले मूरख, पानी मंगा लिया होता
तभी दोस्तों! आधी रात एक बिसलरी लाया...
१२ बजे रात के बाद तब फिर खाना है खाया... 
इसीलिये आ रही नीद अब ऑफिस में झपकी आती
दिल्ली में मेहमान नवाजी 'शिशु' को सच में ना भाती. 

Tuesday, March 15, 2011

रैली नहीं रैला है...

रैली नहीं रैला है,
बैग जो हांथ में है 
बैग नहीं थैला है
घर वाली है घर में बैठी,
दिल्ली जो साथ आयी वो मेरी लैला है...
'शिशु' इन रैली से 
संसद रोड मैला है

Monday, February 14, 2011

बाप पुलिश में डिप्टी साहब बेटा करता फेरा-फेरी....धत तेरे की!

धत तेरे की! 
पढ़ा लिखा होकर भी तू क्यों बेंच रहा झरबेरी,  
धत तेरे की! 

बाप पुलिश में डिप्टी साहब बेटा करता फेरा-फेरी, 
धत तेरे की! 

पूरे साल खूब मेहनत की, उस पर पाए धान पसेरी,
धत तेरे की! 

जब तक जिन्दा रहे ना पूछा अब मरे को दे रहे हलुआ-पूरी, 
धत तेरे की! 

हीरा के लड़के शीरा को तरसें 'शिशु' गदहे देखो खायं पंजीरी, 
धत तेरे की!

लूट मची, लुट गए खेल में भारत के करदाता...

लूट मची, लुट गए खेल में भारत के करदाता,
आँख खोल के अब तो देखो भारत की भारतमाता.

ऐसा-वैसा नहीं! गज़ब का अजब हुआ घोटाला,
लुटी तिजोरी खेल गाँव में लगा रहा पर ताला.

दूध धुला जिसको समझा था वो निकला सर्वेश,
शशि थरूर ने खाता खोला पहली बार विदेश.

सब कहते कलमाडी ही है असली भ्रष्टाचारी,
'शिशु' और भी शामिल हैं कुछ इसमें खद्दरधारी.

नौकरशाह और नेता ही अब सबके हैं भाग्यविधाता
जन गण मन अधिनायक जय हे, उनकी भारतमाता

Friday, February 4, 2011

...लखटकिया में बैठा मानुष 'शिशु' को दिखलाता है ताव.

इंग्लिश बोली वाले सारे घुस गए हाल के अन्दर,
हिन्दी भाषी अरे बिचारे! देख रहे बन बन्दर. 

सभी जगह ही इंग्लिश बोली वाले हैं अधिकारी, 
हाय! शिशु! हिन्दी भाषी ही नौकर हैं नर नारी.  

जैसे फिक्स मैच पहले से उसी तरह होते कुछ जॉब, 
जान समझ कर अप्प्लाई कर सुन ले ओ महताब. 

ह्युमन राईट्स, इक्वालिटी जो जेंडर सदा बोलते, 
वो ही सारे सामाजिक हैं भेद जो सभी खोलते.  

जब से कार आयी लखटकिया कार को देता ना कोई भाव,
पर लखटकिया में बैठा मानुष 'शिशु' को दिखलाता है ताव.

काला कोट पहनने वालों से, हे भगवान् बचाए!

काला कोट पहनने वालों से, हे भगवान् बचाए!
साथ में काम किया पर वो फूटी आँख ना भाये,
पर वो फूटी आँख ना भाये कान के होते कच्चे
दिन भर झूठ बोलते खुद, खुद को कहते पर सच्चे 
'शिशु' कहें दोस्तों उनके साथ साल एक मैंने काटा 
काला कोट पहने वालों का सच, सही आपसे बांटा

Tuesday, February 1, 2011

प्रजापति की पिकनिक सब जमा हुए नरनारी.

बच्चों जैसी हंसी, धूप की थी वैसी किलकारी, 
प्रजापति की पिकनिक सब जमा हुए नरनारी.

आयोजक या संचालक का फिर कर्ता-धर्ता बोलूँ
समय के पक्के हैं 'हेमंत' 'शिशु' उनका जैसा होलूँ   

अबकी बार 'विनय' जी के संग पत्नी, पुत्र भी आये,
'सत्यवीर' जी याद आ गये सबके मन को भाये. 

१२ बजे 'वेद' आया 'संदीप' को फ़ोन मिलाया  
१ बजे तक रहा घूमता पर न उसे मिलपाया 

घंटे एक पार्क में उसने कितने ही चक्कर काटे
खत्म हुयी मीटिंग तब उसने, मुझसे अनुभव बांटे 

शुरू हुआ परिचय जब सारे लोग हो गए पूरे
खुलकर परिचय दिया सभी ने आधे-नहीं-अधूरे.   

नंबर वन की नेट्वोर्किंग के नंबरवन पर आये  
'एल.बी. प्रसाद जी' ने अपने अनुभव खूब सुनाये

नहीं नौकरी बदली अब तक ये दूजा है काम 
नाम के साथ बढ़ गयी पदवी और बढे हैं दाम

'चंद्रसेन जी' ने फिर अपने नाम का भेद था खोला
समय लगा बतलाने में पर सच-सच उनने बोला

जैसे जीवन नैया पार लगाने वाले केवट थे राम 
रेल चलाने वाले 'रामवीर जी' उनका अद्भुत काम 

हैं विनम्र और मृदुभाषी, नहीं रिटायर अबतक दिखते 
इनके पिताश्री भी कम ना अबतक बिन चस्मा के लिखते

लम्बे  जीवन का रहस्य खुलकर उनने बतलाया 
हम लोगों ने सुन उनको रस सत्संगी था पाया 

रामवीर के बाद 'शिवाजी' बोले फिर 'शिवराज' 
डिप्टी एसपी ओहदा उनका उनपर सबको नाज़ 

पिता विशम्भर उनके दिखते सीधे-साधे नेक 
रहो सादगी में सब लोग दे गए वो सन्देश 

गौतमबुद्ध नई यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जी आये 
जिनके उत्तम सुविचार भी सबलोगों को भाये 

सुनी-सुनायी बातों पर ना करना तुम विश्वास कभी 
बोले- जो भी करो स्वयं से रखना ना दूजो आस कभी 

फिर महानगर संचार व्यस्था के 'अवनीश' पधारे 
आई.बी.एम्. के 'सुभाष जी' आये सबके लाड़-दुलारे 

'अम्बरीश', 'कैलाश', 'मगेन्द्र', 'पंकज' भईया आये 
'वर्मा जी' के भाषण सुनकर हम सब हर्षित मुस्काये 

एमबीए का छात्र 'मुकेश' बातें बहुत पते की बोला 
प्रजापति समाज का उसने असली भेद था खोला

'नज़र नज़र के फेर' से बोलूँ वो नेता हो सकता 
नेता बन कर वो समाज का कष्ट सभी हर सकता 

हैं मौसम विभाग में लेकिन सहजयोग के ज्ञाता 
'दुर्गा' है प्रसाद से मीठे उनको सब कुछ आता 

लिखते हैं - 'डी. प्रजापति' जी, दुश्मन जिनसे डरता
हैं सेना में कैप्टन फिर भी सहज योग के अच्छे कर्ता 

लय और ताल बनाये रखना रखो अच्छा इल्म 
पहले पढोलिखो सब फिर भले देखना फिल्म 

सुन्दरता भी दिखी उधर कुछ पत्नी संग जो आये
नाम नहीं लूँगा उनका मैं चहरे जो मन भाए.

मधुर-मधुर व्यंजन, पकवान और मिठाई आई   
परिचय बाद सभी के मुहं में जो पानी थी लायी 

'अपना खाना-अपना गाना' सबके सब ही भूल गए
खाकर स्वदिक खाना यारों पेट सभी के फूल गए

सहज योग की सहजबात फिर कैप्टन जी ने समझाई 
करना माफ़ 'शिशु' को चाचा उसे समझ ना आई

विनय ने ग्रुप की क्षमता से सबको अवगत करवाया 
विनय और हेमंत धन्य हों आपका काम सभी भाया

Popular Posts

Modern ideology

I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes...