Sunday, November 5, 2017

लाइन लगी कि लगी न लगी, नोट बदलने की है नहि आशा

नरोत्तम दास की प्रसिद्ध कविता 'सुदामा चरित्र' की लय पर आधारित है-
सीस पगा न झगा तन में,
प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा

लाइन लगी कि लगी न लगी, नोट बदलने की है नहि आशा।
लोग लगे वो लगे कहने चहुँओर है छायी घोर निराशा।
नोटबंद से ग़रीब-किसान का' घाटा हुआ है अच्छा-ख़ासा।
पुलिश बजावति लठ्ठ कि, कबहूँ बैंक के बाबू देति दिलाशा।

'मन की बात' रेडियो में कह चौकीदार ने सबको फाँसा।
मीठे-मीठे बोल बोलि 'शिशु' वित्त मंत्री भी देता झांसा।
और भक्त मंडली श्राप देति सबहीं जैसे देते दुरवासा।
काला धन है आया नही कुल बीत गए तीनों चौमासा।

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