दुश्मनी से जब कभी भी वास्ता पड़ा,
छोड़ना तब प्यार वाला रास्ता पड़ा।
रात में जब भी कलह की रोटियां खाईं,
छोड़ना तब-तब उसे है नाश्ता पड़ा।
बेंचकर घोड़े हमेशा ले रहा था नींद जो,
देखिये अब इश्क में है जागता पड़ा।
कह रहा था, बर्फ खाने से करो परहेज,
मानता था 'शिशु' नहीं, अब खाँसता पड़ा।
प्यार की यदि बात है तशरीफ़ फरमाएं,
अन्यथा वह आपका है रास्ता पड़ा।
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