व्यवहार कुशलता की मिशाल और वाणी में मधुरता की चाशनी में डुबोकर बात करना कोई हितैषी चाचा से सीखे, पड़ोसी ने खिसियानी हंसी हंसते हुए पड़ोसी को कोहनी मारी। हितैषी चाचा मोहल्ले के सबसे ज़्यादा चलते फ़िरते पुर्जे के व्यक्ति थे। मोहल्ले के किसी भी कार्य में उनकी दिलचस्पी वैसे ही होती जैसे उनकी पत्नी दूसरे की पत्नियों में लिया करती थीं। किसी भी औरत से अपने घर का कार्य कैसे कराया जाय, यह उनके बाएं हाथ का काम था। बोलती तो ऐसे जैसे टेसू के फूल झड़ रहे हों। और हंसते हंसते ही कब आपसे काम निकलवा लें आपको खुद पता नहीं चलेगा। किसी की मजाल की उनकी मीठी बोली के चलते उनके काम को मना कर दे। ख़ैर ये तो रही इनकी बात अब आगे सुनिये हितैषी चाचा की बात।
एक रात को उन्होंने अपने पड़ोसी 'राजू' जोकि, दूसरी जाति का व्यक्ति था को घर पर बुलाया। दूसरी का इसलिए कि उनको अपनी जाति से ज्यादा दूसरी जातियों में ज्यादा दिलचस्पी थी। इसलिये उन्होंने उस व्यक्ति को कहा कि वह अपने पड़ोसी 'राम' जो राजू की जाति का नहीं है, की जमीन पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर लेता। पहले तो राजू ने उनकी बात को मजाक में लिया क्योंकि राजू और राम में पक्की दोस्ती थी, फ़िर बार बार कहने पर और हितैषी चाचा को अपना हितैषी मानकर मुद्दे पर गंभीर हो गया और लगा चर्चा करने। बात बात में उन्होंने उसे बताया कि कैसे वह शुरुआत करेगा और फिर एक दिन कैसे जमीन पर उसका कब्जा हो जाएगा, क्योंकि गांव और मुहल्ले के सारे जमीन जायदाद के झगड़े निपटाने के कार्य हितैषी चाचा ने ले रखे थे। इसलिये निपटारे के समय ऐसा ही कोई होगा जो उनकी बात को टालेगा। हितैषी चाचा ऐसा उसे इसलिये कहने को बोल रहे थे कि वो उनको अपना सगा हितैषी समझते थे। बात आई और चली गयी। फिर एक दिन उन्होंने उसे दुबारा उकसाया कि वह जमीन पर क्यों नहीं कब्जा कर रहा है?
राजू घर आया अपनी माँ और भाई से बात की, हालांकि उनकी मां को हितैषी चाचा की बात ठीक नहीं लग रही थी, फिर भी उन्होंने बेटे का मन रखने के लिए उसकी हां में हां कर दी। अगले दिन की रात को करीब 11 बजे जब राजू का पड़ोसी राम सो गया तो राजू ने उसके घर के सामने पड़ी जमीन पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया। ईंट रात को आयीं। सीमेंट और लोहा पहले से रखा था। मिस्त्री उनका अपना रिश्तेदार था और लेबर का कार्य करने के लिए उन्होंने अपने अविवाहित भाइयों को लगा दिया। इससे पहले कि सुबह के चार बजते, कब्जा करने भर के लिए जमीन पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका था।
सुबह जब उनका राम जगा निर्माण कार्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसने बिना देर किए पुलिश चौकी का रास्ता नापा। यहाँ तक कि इस बात की भनक हितैषी चाचा को भी नहीं लगी। राम के पड़ोसी राजू ने इस कार्य के लिए पुलिश को बड़ी रिश्वत दी थी। पुलिश के दो सिपाही सीधी आ धमके और राजू को पकड़ कर चौकी जाने लगे। हितैषी चाचा जैसा चाह रहे थे ठीक वैसा ही हो रहा था। पड़ोसी की माँ भागी भागी यह बताने आ धमकी। उन्होंने कहा किसी भी तरह वह उनके लड़के को पुलिश केस से बचा लें। हितैषी ने इसके लिए कुछ समय मांगा और सीधे पुलिश चौकी का रास्ता नापा।
हितैषी चाचा ने रिश्वतखोर पुलिश से बात की और सौदा तय हुआ। उन्होंने राजू की मां से 15 हज़ार रुपये मांगे, बेचारी ने जैसे तैसे रुपयों का जुगाड़ किया और हितैषी के हवाले किये। हितैषी ने राजू को छुड़ा लिया। राजू ने हितैषी चाचा के गुणगान मोहल्ले में करना शुरू ही किया था कि एक दिन राम ने राजू के पास आकर धीरे से हितैषी चाचा की पोल खोल दी।
हुआ यह था कि हितैषी चाचा ने जो पंद्रह हजार लिए थे उसमें से पुलिश को रिश्वत के तौर पर केवल पांच हज़ार दिए थे, बाकी बचे 10 हज़ार उन्होंने घर में रख लिए थे, क्योंकि रामू को ख़ुद पुलिश वाले ने बताया था कि उसे पांच हज़ार रुपये देकर राजू को छुड़वाया गया था। अब जाकर राजू को समझ आया क्यों हितैषी चाचा उसे रामू की जमीन पर कब्जा करने की सलाह दे रहे थे। ये तो रामू की भलमानसी थी कि वह राजू का दुबारा दोस्त हो गया था। हितैषी चाचा अब किसी दूसरे शिकार की तलाश में इधर उधर भटक रहे थे।
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