न ही आता उसे कुछ भी, न ही कुछ काम करता है।
देखता हूँ उसे जब भी पड़ा आराम करता है।।
हकीकत को 'शिशु' समझें, मजे में हैं सभी चमचे!
पकाता है जो खाने को उसे बदनाम करता है।।
हौसला-अफजाई में पड़ा रहता है जाने क्यों?
गप्पबाजों के संग बैठा सुब्ह से शाम करता है।
तसल्ली दे रहा तुमको, तुम्हारा भी भला होगा!
कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद फ़क़त ये काम करता है।
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