इतना अच्छा झूठ!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?
अच्छा होता अच्छे कवि की
कुछ कविताएं पढ़ देते।
नई विधा में नव शब्दों के
नूतन छंद ही गढ़ देते।
सच कह देता है आलोचक
तब जाते तुम रूठ!
कविजी किससे सीखा है?
आह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?
देशभक्ति की कविताओं में
नफरत भी फैलाते तुम।
रीतिकाल के छंदों में तो
मादकता भर लाते तुम।।
शेर, शायरी, गीतों में तब
क्यों जाती लय छूट!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कवि जी, किससे सीखा है?
कवि मंचो पर झगड़ा-झाँसा
मोल भाव कर लेते हो,
वहाँ शेर जैसा दहाड़ते,
पब्लिक को डर देते हो।
नफरत के काँटे तक में
तुम घुसा रहे हो ठूँठ!
कवि जी किससे सीखा है?
इतना अच्छा झूठ!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?
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