ये जो मलाई काट रहा था,
रेवड़ियाँ अपनों में बाँट रहा था,
आपको सरेआम डाँट रहा था।
आज वो फ़िर खड़ा है,
जीतने पर अड़ा है,
जनता को छोटा
ख़ुद को कह रहा बड़ा है।
उसे दिखा दो,
सबक सिखा दो।
पिछली बार भी वो/
आपके वोट से जीता था,
नारियल की तरह खून पीता था।
अब ठहर!
सुबह, शाम, दोपहर!
वोट वही फ़िर डालेंगें,
कुर्सी के नीचे लालेंगें।
फिर तू दोने चाटेगा,
मालिक तुझको डाँटेगा,
और च्युंटियाँ कटेगा।😊
©शिशु नज़र नज़र का फ़ेर
No comments:
Post a Comment