जीतने में तुम रहे असमर्थ कौरव!
और भी हैं युक्तियाँ।
धूर्तता, षड्यंत्र में तुम सब निपुण,
मूर्ख कैसे हैं बनाते, ये भी गुण।
दाँव भी चलने सभी आते तुम्हें,
धर्म की ओढ़ो दुशाला भक्ति की धुन-
अर्थ का भी खोजिए तब अर्थ कौरव!
भाषणों में जोड़िए कुछ सूक्तियाँ।
जीतने में तुम रहे असमर्थ कौरव!
और भी हैं युक्तियाँ।
उग्रपन भी है तुम्हारी चाल में,
जीतना तो चाहते हर हाल में।
धनुर्विद्या में निपुण सब योद्धा,
छेद लेकिन हैं तुम्हारी ढाल में।।
शस्त्र सारे हैं तुम्हारे व्यर्थ!
याद रखना ये हमारी पंक्तियाँ।
जीतने में तुम रहे असमर्थ कौरव!
और भी हैं युक्तियाँ।
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