Sunday, June 16, 2019

गद्दी

प्राइमरी में 5वीं के दौरान जब मैं बीमार हुआ, घर में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। एक तरफ़ मैं बीमार था दूसरी तरफ मेरी दुधारू भैंस। जानवरों को चराने के दौरान बारिश में भीगने से हम दोनों बीमार हुए थे। मैं इंसान था इसलिए घरवालों की नज़र मुझ पर जल्दी पड़ी। जब दो दिन हो गए जानवर ने चारा खाना बंद कर दिया तब पता चला कि वह भी बीमार है। और इसके बाद पिताजी की मानसिक हालात खराब हो गई, उन्हें इतना आघात लगा कि लोग बोलने लगे वे पागल हो गए हैं। पड़ोसी और ख़ानदान के लोगों को लगता था कि किसी ने कुछ खिला पिला दिया (ऐसी मान्यता थी, कि टटका-टोना करवाकर प्रसाद या खाने में कुछ खिला देना जिससे किसी को भी कुछ हो सकता है) होगा। घर में लोगों को दवाई से ज़्यादा झाड़फूंक पर विश्वास हो गया।

मेरी दवाई कौशल डॉक्टर के यहाँ से आने लगी। उनसे बेहतरीन इलाज करने वाला कोई और न था। कई बार मरीज आने भर से ठीक हो जाता था। बड़े नेकदिल, कम पैसे में इलाज करते हैं। लेकिन उन दिनों डॉक्टर कौशल के यहां कंपाउंडर बनने वालों की होड़ लगी थी, कोई अखबार फाड़कर पर्ची बनाता, कोई गंभीर हालत के मरीज को उठाता बैठाता, और कुछ एक लोग मरीज की काउंसलिंग करते। कहने का  तात्पर्य यह कि मरीज से ज्यादा अन्य लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। सामने चौपाल थी जहाँ 8 से 10 लोग ताश की गड्डी फेंटते। गांव में कौन और किसे क्या बीमारी है सभी को पता चल जाती। पहले डॉक्टर सलाह देते, बाद में लोग। कुछ एक लोग सुई (इन्जेक्शन) लगाने का भी अभ्यास कर रहे होते, कोई नया और गरीब बीमार आता इससे पहले कि डॉक्टर साहब कहते कंपाउंडर सुई बनाकर ठोंक देता। ऐसी ही एक सुई लगाने से मेरे दाहिने हाथ में इंफेक्शन हो गया और बाँह फूल गई थी फिर ऑपरेशन करके मवाद को निकाल गया था। गाँव में जब हालात बदत्तर से बदत्तर हो गई मुझे हरदोई ले जाया गया, खैर इसकी अपनी एक अलग कहानी है..., कभी बाद में साझा करूँगा।

मेरे सभी रिश्तेदार मेरे माँ बाप पर गद्दी (ऐसा स्थान जहाँ कोई ओझा यह दावा करता कि व्यक्ति पर कोई साया है जिसे झाड़फूंक पर ठीक किया जा सकता है) पर जाने की सलाह देते। मैं बिस्तर पकड़ चुका था इसलिए गद्दी पर ले जाना मेरे घरवालों के लिए थोड़ा मुश्किल था। पता चला कि हथौरा गांव का एक व्यक्ति किसी भी गांव में जाकर गद्दी लगाता है। वह एक हट्टा-कट्टा, लंबा, जवान-बागड़ू, लंबे बाल, काला कुर्ता और कट वाली दाढ़ी रखता था, जिसे पहलवानी का भी शौक था। वह आंखों में सूरमा लगाता था। हथौरा में मेरे परिवार की एक लड़की का विवाह हुआ था इसलिए वह नई नवेली और जवान महिलाओं से जीजा कहलाना पसंद करता था। तब रामसरन चच्चा के खपरैल जहाँ पड़े थे, वहाँ पर उसने अपनी धूनी जमाई। वह मेरे लिए आया था, लेकिन मुझे दिखाया जाता इससे पहले ही वहां लोगों का जमावड़ा लग गया। कोई अपने परिवार के कलह के बारे में पूछ रहा था, किसी की दो ही साल पहले शादी हुई थी औलाद के लिए पूछ रहा था। लेकिन ज्यादातर लोग बीमारी हजारी के बारे में पूछ रहे थे, औरतों से बात करने में वह खिलखिलाकर जवाब देता। कंधे चौड़े कर देता और सीना बाहर निकाल देता। मुंह पर मुस्कराहट फैली रहती जबकि आदमी को वह डांट फटकार कर जवाब देता। जिसका नतीजा यह होता आदमी अपनी औरत से ही पूछने के लिए कहता था। जब सब चले गए मेरा नंबर आया तभी उसने कहा अब कल देखेगें। आज इतने समय तक की सवारी (किसी अच्छी आत्मा का उसके अंदर निवास) थी।

मैं 4 महीने से बिस्तर पर पड़ा था। हड्डियों का ढांचा ही बचा था। इसलिए बैठने में समर्थ न था। मुझे लिटा दिया गया। श्यामू भइया के छप्पर के नीचे खाट डाली गई। सिरहाने दवाइयों का भंडार, खाट के नीचे एक लोटा पानी, और एक लाठी, बिस्तर पर तकिए के नीचे हसिया रखी थी। लोग देखने आते और जो भी देखता वहीं एक दूसरे के कान में कानाफूसी करता कि यह बचेगा नहीं। जल्दी ही बेरिया घाट या मेहँदीघाट पर क्रियाक्रम होगा।

अगले दिन फिर गद्दी लगी। उससे पहले उसके लिए रात को खाना खिलाने वालों की होड़ लगी थी। कोई कहता हमारे घर खाना, कोई कहता हमारे घर। पूड़ी पकवान, बरा, कढ़ी-चावल, सबके सब उसे आमंत्रित करके गए, लेकिन उसे ये सब खाना रास न आ रहा था, तब हमारे परिवार में ज्यादातर लोगों ने गुरु कर रखा था इसलिए नॉनवेज का सवाल ही नहीं उठता था। ख़ैर गद्दी लगी, आज भी लोग अपने अपने प्रश्नों का गठ्ठर लेकर खड़े थे कुछ नए लोग भी आ गए। लेकिन मेरा नंबर पहला था, उसने जादू टोना चलाना शुरू किया, जब वह अपना सिर अजीब तरीके से घुमाता मुझे डर लगने लगता,, रूह कांप जाती। मेरी माँ मुझे पकड़े बैठी थीं, उसने मेरी माँ का हाथ जोर से झटक दिया और मुझसे कहा खबरदार जो हिला या गिरा, मैं डर गया डर की वजह से गिघ्घी बांध गई न रोने की आवाज आ रही न कुछ बोल पा रहा था। तब सर्वेश के बाबा चाक चालते थे उनका चाक घुमाने वाला डंडा वहीं पड़ा था, उसने झपटकर उसे उठाया, मैंने मन ही मन सोच लिया अब बचना मुश्किल है कहीं मारने न लग जाए, क्योंकि एक दिन पहले ही उसने एक जवान लड़की की मरम्मत कर दी थी चुड़ैल भगाने के चक्कर में। मेरे काटो तो खून नहीं, घबराहट में पसीना पसीना हो गया, वह खड़ा हुआ उसने चिल्लाकर कहा भाग जा इसके शरीर से नहीं तो इतने डंडे लगाऊंगा कि तुझे नानी याद आ जायेगी। मैं उठने की कोशिश करने लगा उसने मुझे डंडा पकड़ा दिया, और डर की वजह से मैं डंडा पकड़कर इधर उधर चलने लगा। 4 महीने में पहली बार मैं चला था भले ही डंडे के सहारे। हर कोई मुझे और उसे ताज्जुब से देख रहा था।

फिर मैं लड़खड़ाकर गिर गया, उसने कहा आज के लिए इतना ही। इसके बाद वह किसी अन्य गांव को चला गया, बाद में पता चला वह वहाँ से किसी औरत को लेकर रफूचक्कर हो गया था। तब से आजतक न उसके बारे में सुना और न ही जानने की इच्छा हुई। कल घर में मेरे ससुर जी खिलाने पिलाने पर ऐसा ही कुछ बता रहे थे, अपनी यादें ताजा हो गईं और इसे सोशल मीडिया पर साझा कर रहा हूँ।

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