छंद
एक दिन गाँव में, पान की दुकान पर,
चर्चा चली थी वहाँ जोर से विकास की।
पनवाड़ी बोला पहले, अमरू किसान से,
तुम्हें नहीं दिखेगा, तुम्हें है चिंता घास की।
'छंगा हलवाई' बोले हमको भी दिखा नहीं,
बोला वह चिंता करो अपनी तुम श्वांस की।
'कवि' को देखकर बोला 'आजकल के हो',
तुमको तो चिंता रहती कवि 'विश्वास' की।
गुस्से में 'मुझसे' बोला- फूट लो गुरू तुम,
लगता तुम राह तक रहे सत्यानाश की!!
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