Wednesday, September 4, 2019

अनुमानित


जिसको पीपल समझा, पूजा,
निकला पेड़ पकरिया वो।
कुल्हड़ कहकर बेंच रहा है
दिखती 'शिशु' चुकरिया वो।।

जिनको समझा झील, समंदर,
निकले छिछली दरिया वो।
भूल गए सागर में मिलते,
नद्दी, नाले, नरिया वो।।

सड़क किनारे रेड़ी-पटरी,
रोज़गार का जरिया वो।
पुलिस को पैसे लेते देखा,
लगती लूट जबरिया वो।।

जिनको बज्जतिया था समझा,
निकले विषधर करिया वो।
जगमग-जगमग कहते फिरते,
निकली रात अंधेरिया वो।।

शब्दार्थ:-
- पकरिया: छायादार पेड़, इसके पत्ते बकरी बहुत चाव से खाती है। पतझड़ के बाद नवीन कपोलों को ठुठिया कहते हैं, उसकी सब्जी बनती है।
- चुकरिया: बच्चों को लिए खिलौना जैसा मिट्टी का एक बर्तन। इसे कभी कभी पूजा आदि में भी प्रयोग में लाते हैं। इसमें यदि छेद कर दें तो उसे भर्रा कहते हैं, जिसमें कोयले को कूटकर भरने के बाद एक रस्सी से बांधकर घुमाने के दौरान चिंगारी निकलती है, देखने में मनोहारी लगता है।
- नरिया: नाले का छोटा रूप।
- बज्जतिया: पानी का सांप, कम जहरीला।
- करिया: काला नाग।

No comments:

Popular Posts

Modern ideology

I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes...