सफ़ेद रंग मेरा प्रिय रंग है। कफ़न जैसा सफ़ेद, हूबहू, भारतीय रेल के तीसरे और दूसरे दर्जे के यात्रियों को दी जाने वाली बेडसीट जैसा। ऐसे ही रंग एक पक्षी का भी है जिसे बगुला कहते हैं, सुर्ख़ सफ़ेद! कबूतर कुछ भी नहीं है इसके आगे भाई साहब! यकीन मानिए! असल में असली शांतिदूत बगुला होता यदि वह मांसाहारी न होता! (ये नियम जरूर शाकाहारियों ने बनाया होगा)
बचपन में सफ़ेद बगुले देखकर इतना कौतूहल होता था, कि कई बार अपने बटाई खेत के पास तालाब किनारे घंटो बैठकर उनको निहारता रहता था। वे शिकार में इतने ध्यानमग्न होते कि, उन्हें पता ही नहीं चलता कि, कोई उन्हें देख रहा है। कौआ के बाद बगुला ही ऐसा पक्षी है जिसे प्राचीन काल की भाषा संस्कृत में किसी उपाधि (बकोध्यानं) से नवाजा गया है।
सभी प्राणियों की तरह इनका भी पानी ही प्रिय पेय पदार्थ है, हालांकि, मांसाहारी होने के कारण इन पर कुछ संदेह ज़रूर होता है, कि वे शराब के भी शौकीन होंगे। क्योंकि, ऐसा कहा जाता है कि, शराबी मांसाहारी नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन मांसाहारी शराबी अवश्य हो सकते हैं (आम भारतीयों की राय अनुसार) ख़ैर छोड़िए, यह अभी भी शोध का विषय है।
बगुलों में एकता का अनूठा संगम दिखता है, ये प्रकृति प्रेमी, निश्छल प्रेमी और मेहनती होते हैं। और सम्मोहक तो बिल्कुल वैसे ही जैसे सफ़ेद कुर्ते पायजामें में नेता जी।😊
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