Thursday, September 12, 2019

प्यार की कली।

कुछ दिन से मन अनमना मेरा,
यादें  रह,  रह  कर  आती  हैं।
लगता  प्रियजन  को  भूले हो,
चुपके  चुपके  कह  जाती हैं।।
          फिर रोने का  दिल करता है,
          सिसकियाँ बीच आ जाती हैं।
          थपकी  देतीं  कंधों  पर  वे -
          साहस  और  धैर्य  बँधाती हैं।

तब खोल अटैची अपनी मैं
कुछ  पत्र  पुराने  पढ़ता हूँ।
जब  आंखें गीली हो जातीं,
शब्दों  को  ऐसे  गढ़ता हूँ।।
          एक  पत्र  पुराना  हाथ  लगा,
          एक  मित्र  हमारा  लिखता है-
          " इन  दिनों  प्रेम  में  हूँ  प्यारे,
           सब अच्छा-अच्छा दिखता है।"

इसलिए  प्रेम  से  बात  सुनों -
कुछ प्यार मोहब्बत करिए तुम,
पीड़ादायक  जीवन  में अपने-
कुछ  रंग  सुनहरे  भरिए  तुम।
          "हे  दोस्त,  सखा,  मेरे  प्यारे !
           करुणा रस में क्यों लिखते हो?
           लिखिए  अपने  अंदाज़  वही,
           क्यों तुम उदास से दिखते हो?"

उन दिनों उदासी  दूजी थी,
जो बहुत दिनों तक घेरे थी।
तब जीने की  उम्मीद न थी,
तब  कौड़ी पास न मेरे थी।।
          अब उसकी बातें सच लगतीं,
          रिश्तों से खुशियाँ  मिलती हैं,
          है प्यार की कली बड़ी कोमल,
          हर मौसम में वह खिलती है।

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