मेहनत तो करता हूँ फिर भी घर खाली है बाबूजी
मिट्टी के कुछ दीपक ले लो दीवाली है बाबूजी
अब तो नाम ग़रीबी का भी लेने में डर लगता है
सरकारी दस्तावेज़ों में खुशहाली है बाबूजी
लाखों दीप जलेंगे ऐसा सुनने में जब से आया
अवधपुरी जाने की ज़िद पर घरवाली है बाबूजी
मिट्टी बेच रहा हूँ जिसमें कोई जाल फरेब नहीं
सोना चांदी दूध मिठाई सब जाली है बाबूजी
झटका एक लगे तो सबकुछ टूटे विखरे पलभर में
सबका जीवन चीनी मिट्टी की प्याली है बाबूजी
- ज्ञानप्रकाश आकुल
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