Sunday, October 27, 2019

मिट्टी के कुछ दीपक ले लो दीवाली है बाबूजी

मेहनत तो करता हूँ फिर भी घर खाली है बाबूजी
मिट्टी  के  कुछ  दीपक  ले  लो दीवाली है बाबूजी

अब  तो  नाम ग़रीबी का भी लेने में डर लगता है
सरकारी  दस्तावेज़ों   में   खुशहाली   है  बाबूजी

लाखों  दीप  जलेंगे  ऐसा सुनने में जब से आया
अवधपुरी जाने की ज़िद पर घरवाली है बाबूजी

मिट्टी बेच रहा हूँ जिसमें कोई जाल फरेब  नहीं
सोना चांदी दूध  मिठाई सब जाली  है  बाबूजी

झटका एक लगे तो सबकुछ टूटे विखरे पलभर में
सबका जीवन चीनी मिट्टी की प्याली है बाबूजी

- ज्ञानप्रकाश आकुल

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