Saturday, December 28, 2019

अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है!


अगले साल की अगले साल देखी जाएगी,
अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है!

सिंहासन पर रीतिकाल है,
भक्ति  भाव चहुँओर हैं।
करुणा रस के कवियों का
लेकिन बचा  न  ठौर है।
गीत, लेख, आलोचनाओं का
नहीं  पुराना  दौर  है।
पत्रकार' की 'पत्रकारिता' में-
भी  तो  लय  और  है...
कारण...?
अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है।

अगले साल की अगले साल देखी जाएगी,
अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है!

जापनाह  का  वादा  झूठा,
प्रजातंत्र   से   नाता  टूटा।
पत्ता   पत्ता   बूटा   बूटा,
संविधान को सबने  लूटा।
महंगाई   से   नाता   टूटा।
बाँध दिया सबके ही खूँटा,
कलुआ रूठा, ललुआ रूठा,
जबसे   छीना   कौर   है...
कारण...?
अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है।

अगले साल की अगले साल देखी जाएगी,
अबकी साल बड्डक्के भइया के देखो सिरमौर है!

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