Monday, December 30, 2019

आंखों देखी।



अखबारों  का बासीपन।
टीवी   देख  उदासीपन।।

जापनाह की करे प्रशंसा,
आलोचक का दासी मन।

हुल्लड़बाजी, दंगा करते,
मूरख यहाँ  हुलासी बन।

मगहर में भी मिलता मोक्ष,
सुनकर आए, काशी जन।

लाइन लगी बैंक के बाहर,
होती  देख  निकासी धन।

©शिशु #नज़र_नज़र_का_फ़ेर

- - - -
हुलासी: अत्यधिक उत्साहित

No comments:

Popular Posts

लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं.

 रंग हमारा हरेरे की तरह है. तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है. करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं, लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं. ज़िंदगी अस्त व्यस्त ...