Monday, October 20, 2008

मुझे नहीं मालूम

किसी बात को नकारने के लिए एक यह कह देना ही काफी है ‘मुझे नहीं मालूम’

‘मुझे नहीं मालूम’ मैंने इसे लिखना ही क्यों शुरू किया आखिर इसका नतीजा भी क्या निकलेगा। ये भी कोई लिखने की बात है। ‘मुझे नहीं मालूम’। लेकिन वास्तव में ‘मुझे नहीं मालूम’ आप क्यों ऐसा सोचते हैं जबकि हर किसी भी बात का कोई न कोई मतलब जरूर होता है। ऐसे ही किसी भी बात को बिना सोझे समझे कह दिया ‘मुझे नहीं मालूम’। हां यह बात अलग है कि समझकर जब इंसान किसी बात को कह देता है कि ‘मुझे नहीं मालूम’ तब और बात है।

भारतीय पुलिस इसी ‘मुझे नहीं मालूम’ के चक्कर में कितनी बार चक्कर में पड़ जाती है। अपराधी कहता है उसे नहीं मालूम कि क्यों उससे यह मालूम कराया जा रहा है जबकि उसे नहीं मालूम। पुलिस कहती है ‘मुझे मालूम है ’, अरे जब पुलिस को मालूम है ही तो ‘मुझे नहीं मालूम’ फिर उस इंसान को क्यों परेशान कर रहे हो जो बार-बार कह रहा है उसे नहीं मालूम। अरूषि काण्ड में उत्तर प्रदेश पुलिस की तो इसी के कारण फजीहत तक हो गयी। पुलिस बार-बार कहती रही कि डॉ तलवार को मालूम है लेकिन डॉ तलवार बार-बार कहते रहे कि उन्हें नहीं मालूम। बात सी।बी.आई तक आ गयी। लेकिन मामला वहीं का वहीं रहा नहीं मालूम। सुना है अब यू.पी पुलिस भी कह रही है उसे नहीं मालूम।

बच्चे जब किसी बात पर कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम तब समझ में आता है कि चलो बच्चा है नहीं मालूम लेकिन उम्र दराज लोग जब कहते हैं कि ‘मुझे नहीं मालूम’ तब मुझे मालूम होता क्यों यह लगता है कि बच्चे को वास्तव में नहीं पता होगा क्योंकि जब बच्चे के बाप को नहीं मालूम तो बच्चे को कैसे मालूम होगा। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि शादी की 40वीं और 50वीं वर्षगांठ मना चुके इंसान को भी उसकी बीबी कहती है कि ‘मुझे नहीं मालूम’ तुम ऐसे हो। यानी पूरा जीवन साथ बिता दिया लेकिन फिर भी नहीं मालूम।

आजकल तो इसके बारे में लोगों का नजरिया बदल गया है जब वे कहते हैं नहीं मालूम तो समझो इसे जरूर मालूम होगा और यदि कहता है कि मालूम है तो समझो नहीं मालूम होगा। कई बार लोग मालूम होते हुए भी कहते हैं मालूम तो है यार लेकिन मालूम होते हुए भी क्यू पचड़े में पड़ू इसी लिए ‘मुझे नहीं मालूम’ ही कहना ठीक है। आजकल कोर्ट और कचहरियों में यही तो हो रहा है। जिसको मालूम है वही नहीं मालूम की रट लगाये है और जिसे नहीं मालूम वह मालूम है की रट लगाये है। मामला रफा-दफा। बस। मनोचिकित्सकों का कहना है कि नहीं मालूम कहना एक बहानासाइट नामक बीमारी है। लेकिन ‘मुझे नहीं मालूम’ ऐसा होगा।

बात तब और दिलचस्प हो जाती है कि जब एक आदमी दूसरे आदमी की महानता का बखान करता है। ‘यार तुम्हें नही मालूम तुम क्या चीज हो’ पहला आदमी यह जानकर नहीं खुश होता कि दूसरे ने उसकी बड़ाई की है उसे तो यह मालूम हो जाता है कि या तो वह (बड़ाई करने वाला) उससे कोई चीज मांगना चाहता है या उसका ऐसा कहकर मजाक उड़ा रहा है।

पढ़े लिखे लोगों को ‘मुझे नहीं मालूम’ कहने की आदत बन चुकी है। अनपढ़ का क्या? उसे मालूम भी होगा तब भी कह देगा ‘मुझे नहीं मालूम’ और लोग भी विश्वास कर लेंगे कि अनपढ़ है इसलिए नहीं मालूम होगा। और ये अनपढ़ लोग ये भी बड़े ढीठ होते हैं जब तक पड़े लिखों से ‘मुझे नहीं मालूम’ न कहवा लें तब तक दम नहीं लेते। अब देखिये-एक बार एक अनपढ़ ने मुझसे कहा ‘दो और दो कितने होते हैं?’ मैंने कहा चार। ‘ठीक है पढ़े लिखे हो’। अनपढ़ ने कहा। अच्छा यह बताओ भला यह क्या लिखा है (एक टेढ़ी-मेढी लकीर बनाकर)। मैने कहा ‘मुझे नहीं मालूम’। मैं यही तो सुनना चाहता था। अनपढ़ का जवाब था। अरे इतना भी नहीं मालूम यह बद्धा मूतनि है (बैल के पेशाब की डिजाइन)।

पाठकगण भी सोच रहे होंगे कि यह भी क्या बेमतलब की बात लिखे जा रहा है। मेरा तो यही जवाब होगा ‘मुझे नहीं मालूम’।

3 comments:

Unknown said...

Aapka lekh bahut achha laga aur lekhan shaili bhi....vyangya ke put ke saath aap gambhir vishayon ku kushalta se jodte hain. Yah prashansaneey hai. Meri shubhkaamnayen!

P.N. Subramanian said...

शानदार लेख. मज़ा आ गया. हम लोग आपस में कुछ लोगों के लिए एक शब्द प्रयोग में लाते हैं. "एम.एन. ब्रांड" मतलब मालूम नहीं.

http://mallar.wordpress.com

Sudhir K. Rai said...

Muje nahi malum tha ki app itne savendan shil aur parhi hridya rakhte hai...wahhhhhhh

dher sari shubhkamnaye aap ko aur apke es pyare rachna ko

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