सोच समझकर बोलना भले झूठ हो सत्य
जितना संभव हो सके छिपा सभी लो तथ्य
छिपा सभी लो तथ्य झूठ का दामन पकडो
काम करे जो जितना ही उसको ही रगडो
कहें 'शिशु' सत्यता ना कटु बनाओ
खुदका हित बनता है यदि तो झूठ बोलते जाओ
दोस्त भले दुश्मन बने अपना हित लो साध
सबसे पहले खुद को देखो उसके बाद एकाध
उसके बाद एकाध और वो भी अपने हो
भले इन्ही अपनों की खातिर नाम कई क्यूँ जपने हो
'शिशु' कहें बात है सीधी साधी
साध के अपना हित करो दूसरों की बर्बादी
गाँव गाँव नौबत बजी अच्छो को लो खोज
पकड़ पकड़ लाओ यंहा देता हूँ मै डोज़
देता हूँ मै डोज़ बड़े अच्छे बनते हैं
है कठोर कलयुग फिर भी सच्चे बनाते हैं
'शिशु' कहें शुभ चुनाव की बेला आई
गुंडों और बदमाशों ने यह नौबत बजवाई
अभिनेता नेता बने अभिनय फेंका दूर
जैसे ही कुर्सी मिली वादे हुए कफूर
वादे हुए कफूर राह अभिनय की पकडी
और दूसरे एक संसद की कुर्सी जकड़ी
'शिशु' कहें आज नेता ही अभिनेता पूरे
इसीलिये जनता के वादे रहते सदा अधूरे
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5 comments:
वैसे भी जब जगत ही मिथ्या है, तो इसमें सत्य कैसे कोई उम्मीद की जा सकती है?
अभिनेता, नेता बने, लोकतन्त्र का खेल।
अद्भुत संगम है यहाँ, बेर-केर का मेल।।
अभिनेता, नेता बने, लोकतन्त्र का खेल।
अद्भुत संगम है यहाँ, बेर-केर का मेल।।
'शिशु' कहें शुभ चुनाव की बेला आई
गुंडों और बदमाशों ने यह नौबत बजवाई
सही कहा ..अच्छी लगी आपकी यह रचना
झूठ भी आराम से बोलो ... फिर देखो खुद का कितना हित बनता है... बहुत सुंदर रचना।
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