Saturday, October 24, 2009

कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता.......

कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता,
सोते दिन में जो कुछ लोग, उनका हाल बुरा होता।
और जिन्हें ना आती नीद, उनके मजे खूब होते,
जैसे दिन भर जगते हैं वो वैसे रात नही सोते।
ऑफिस में जो देर रात तक करते काम बेचारे लोग,
उनको मिलता छुटकारा भी खुशी मनाते वो सब लोग।
बिना रोशनी होता काम बिजली भी बच जाती
उस बिजली से गाँव देहात में और रोशनी आती।
उल्लू और चमगादड़ दोनों जब जी करता सोते,
बिल्ली कुत्ते तंग न करते रात में ना वो रोते।

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

रात और दिन इक जैसा हो तो कब आराम करेगें
कवि फिर रात अकेले बैठ कर कब उड़ान भरेगें
सृ्ष्टि ने जो भी रचा है भाई उसे स्वीकार करो तुम
वर्ना अनिद्रा रोग के कारण बैथे ऊँघा करेगें।;)

M VERMA said...

बहुत अच्छी कल्पना अलग सा और फिर -- क्या कहने

संगीता पुरी said...

अच्‍छी कल्‍पना .. कल्‍पना भी तो कवि का जीवन है !!

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छी कल्‍पना .. कल्‍पना भी तो कवि का जीवन है !!

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