Thursday, November 5, 2009

नही रहे प्र भाष जोशी जी सुबह सबेरे पढ़कर जाना,


नही रहे प्र भाष जोशी जी सुबह सबेरे पढ़कर जाना,
पढी ख़बर बा मगर ये ख़बर को सच मैंने माना
हिन्दी के लेखन में जिसने पूरा जीवन किया समर्पित
ऐसे भीष्म पितामह को है बहुत बहुत मेरा अभिनन्दन



किसी को यकींन नहीं हो रहा है कि कल रात तक लोगों से बात करने वाले प्रभाष जोशी नहीं रहे ।

प्रभाष जोशी दैनिक जनसत्ता के संस्थापक संपादक से पहले नयी दुनिया से पत्रकारिता की शुरुआत की थी। नयी दुनिया के बाद वे इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े और उन्होंने चंडीगढ़ में स्थानीय संपादक का पद संभाला। 1983 में दैनिक जनसत्ता का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसने हिन्दी पत्रकारिता की दिशा और दशा ही बदल दी। 1995 में इस दैनिक के संपादक पद से रिटायर्ड होने के बावजूद वे एक दशक से ज्यादा समय तक बतौर संपादकीय सलाहकार इस पत्र से जुड़े रहे। प्रभाष जोशी हर रविवार को जनसत्ता में कागद कारे नाम से एक स्तंभ लिखते थे। बहुत से लोग इसी स्तंभ को पढ़ने के लिए रविवार को जनसत्ता लेते हैं।

हिन्दी पत्रकारिता में हजारो ऐसे पत्रकार हैं, जो उन्हें अपना आदर्श मानते हैं । सैकड़ों ऐसे हैं, जिन्हें प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया है । दर्जनों ऐसे हैं, जो उनकी पाठशाला से निकलकर संपादक बने हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं, जो प्रभाष जोशी की जगह ले सके ।

उन्हें क्रिकेट से उन्हें बेहद लगाव था । इतना लगाव कि को वो कोई मैच बिना देखे नहीं छोड़ते थे और मैच के एक - एक बॉल की बारीकी पर लिखते भी थे, और देखिए मैच देखते हुए ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो हिन्दी पढ़ने और लिखने वालों से सदा-सदा के लिए जुदा हो गए

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

समाचार ने स्तब्ध कर दिया। हिन्दी पत्रकारिता का वे एक युग थे। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

अविनाश वाचस्पति said...

प्रभाष जोशी जी हमारे मानस में जीवित हैं और सदा जीवित रहेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।

Shishupal Prajapati said...

Dear Shishupal ji

Mughe to apaka blog padhkar hi pata chala ki Prabhat Joshi nahi rahe. Aaj ka Nav bharat maine dekha tha usme yeh khabar nahi. thi. yeh bakai bahut dukhad hai hindi patrakarita aur sahitya ke liye. Prabhash ji ka lekhan anutha tha. Aapne sahi likha hai ki log kai bar kagad jkare padhne ke liye hi Jansatta lete the. Unki cricket commentry ka to mai bhi murid hu.
Sanjeev

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