सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे जो दिखते हैं सारे
जाने कब? कैसे निकलेगे? इस दलदल से तारे
भीख मिलेगी ज्यादा क्या? इसलिए बेचारे रोते
सुबह-रात हो सभी दीखते जाने कब ये सोते
जाड़ों की भीषण रातों में सदा उघारे रहते
गर्मी अब आयेगी तब ये मैला कोट पहनते
जो बच्चे हैं भीख मांगते उनकी उम्र है कच्ची
बड़ी उम्र के किताब बेचते करते माथा-पच्ची
कुछ बच्चे तो गाड़ी भी उन कपड़ों से चमकाते
जिन्हे पहन सर्दी-गर्मी में चौराहों पर आते
दशा कहें या अति दुर्दशा उन बच्चों की होती
जिनको चलने-फिरने या फिर कमी अंग में होती
वे सड़कों के खड़े किनारे बेबश हो बेचारे
देखें कातर नजरों से, कोई उनको देख पुकारे
कुछ बच्चे जो अच्छे-खासे बने अपाहित फिरते
क्योंकि मिलेगा पैसा ज्यादा इसी ताक में रहते
जैसे ही रेड लाइट पर गाड़ियां रूकेगी सारी
कभी-कभी भीख की खातिर करते मारा-मारी
नियम बने कानून बने पहले से इतने ज्यादा
किन्तु आज तक लागू हो पाया देखो आधा
इन गरीब बच्चों के नाम, कुछ लोग जहाज में चलते
मोटी-मोटी तनख्वाहों से अपनी जेबें भरते
प्लानिंग करते, मीटिंग करते, मंहगे होटल में रूकते
उन बच्चों की फिक्र न कोई जो कष्ट अनेकों सहते
वर्कशाप अंग्रेजी में हो यह ध्यान हमेशा रखते
किन्तु न करते जरा ध्यान भी जिनकी दम पर चलते
राइट बेस अप्रोच बनाते एडवोकेसी करते
जितनी भी एनजीओ हैं सब देखा-देखी करते
'शिशु' कहें लिखने में मेरा हृदय द्रवित हो जाता
इससे ज्यादा हाल बुरा अब लिखा नही है जाता
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