Friday, November 29, 2013

देखा! सच! अजी हां!

देखा!
ज्ञान बांटने वाले-
कितने अत्याचारी हैं?
बाबा, लेखक, जज साबह भी
निकले सब व्यभिचाारी हैं।
बात पते की एक बताउं
सब-के-सब व्यापारी हैं।
ठगे गये 'शिशु' इनके हाथों
कैसी ऐ लाचारी है!

सच!
अबकी बार चुनाव मजे का
मुश्किल में सब नेता हैं।
सभी बोलते हम दिल्ली के
अबकी बार विजेता हैं।
वोटर है चालाक बहुत ही
सबके पर्चे लेता है।
अब 4 दिसम्बर पता चलेगा
किसको वोट वो देता है।

अजी हां!
कौन देखता है तुम बेंचो
मंहगा अपना माल,
प्याज के दाम घटा दो थोड़े
मंहगे करो टमाटर लाल
फंस जायेंगे सब-के-सब ही
फंको अपने तुम जाल
जनता है वेवकूफ बहुत ही
उसको होने दो बेहाल।।

Sunday, October 27, 2013

तल्ख़ जुबां कुछ तेरी ऐसी ज़हर घुला है बातों में

कितनी पी है ख़बर नहीं कुछ
फिर से कुछ पी लेता हूँ
जितनी बार याद आती तू  
मर के मै जी लेता हूँ।

हालत मेरी है ऐसी कुछ
जिसका कोई इल्म नहीं
रात-रात को कलम उठाकर
कुछ ना कुछ लिख लेता हूँ

वफ़ादार या कहें बेवफ़ा
इसमें तेरा कोई दोष नहीं
अनजाने ही बोल दिया है
वरना मै बेहोश नहीं।

तल्ख़ जुबां कुछ तेरी ऐसी
ज़हर घुला है बातों में
वरना क्या मज़ाल है किसकी
क़त्ल करें जो रातों में ....

'शिशु' आजकल बहुत अकेले
रात में है कुछ गुजर नहीं
ऐसी है कुछ दुनियादारी
इसमें मेरी बसर नहीं।।

Friday, October 25, 2013

हे प्याज देवता! आओ बाज! कितना हमें रुलाओगे?

हे प्याज देवता! आओ बाज!
कितना हमें रुलाओगे?
पहले तुमको छीला करते तब आंसू थे आते
अब तो देव देखकर तुमको ही आंसू आ जाते
कितने दाम बढ़ाओगे।
अब कितना हमें रुलाओगे?

हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?

रुखी-सूखी रोटी-प्याज ही गरीब हैं खाते,
कभी-कभी तो बिना ही खाये सब-के-सब सो जाते
कब तक तुम तरसाओगे,
अब कितना हमे रुलाओगे।

हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?

देव आपके चक्कर में हैं नेता चांदी काट रहे
जितने हैं बिचौलिये सारे धन आपस में बांट रहे
पर आप नहीं कुछ पाओगे।
अब कितना हमें रुलाओगे?

हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?

धनिया, मिरच, टमामट, आलू अपना ताव दिखाते हैं
सभी आपके ही चक्कर में हमको देव सताते हैं
क्या ये सरकार गिराओगे?
या फिर ऐसे हमें रूलाओगे।

हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?

Friday, June 21, 2013

नेता तो बस नेता है

नेता तो बस नेता है

चाहें हिन्दू चाहें मुस्लिम फिर चाहें ईसाई हो
सगे पाप को धोखा देता, चाहे उसका भाई हो
जनता तो फिर गैर-परायी उसको कुछ ना देता है
नेता तो बस नेता है।

पांच साल के बाद मिलेंगे गाँव हमारे आयेंगे
उससे पहले संसद-मंदिर में हलुआ सब खायेंगे
संसद निधि से अपनी जेब में सब धन वो भर लेता है
नेता तो बस नेता है।

खुद की मुरति पार्क लगाते खुद ही अनावरण करते
अपने चमचों को ठेका दे पैसे का जुगाड़ करते
जनता के दुख भाड़ में जाएँ, अपने दुःख हर लेता है
नेता तो बस नेता है।

Tuesday, April 30, 2013

जीवन की बहती धारा में संयम और विशवास नहीं,


जीवन की बहती धारा में-
संयम और विशवास नहीं,
प्यार मोहब्बत मिलना मुश्किल
अब हंसना भी कुछ ख़ास नहीं।

झूठी आशा, घोर निराशा,
अपनों से कोई आश नहीं,
उन्नति देखी इसकी-उसकी,
यह हमको बर्दाश्त नहीं.

बिल वजह की बहस हो रही
मुर्दा है यह लाश नहीं,
बदबू आती कूड़ाघर से,
कहना इसको बास नहीं।

जो भी पढ़ा-लिखा बचपन में-
वह सच्चा इतिहास नहीं,
ले-देकर लिखवाया जाता-
मंदिर-मस्जिद पास नहीं।

राजनीति की बातें करना-
'शिशु' के बस की बात नहीं,
गांधी जी का चेला बनना-
भी मेरी औकात नहीं।

Friday, March 29, 2013

भैंस बेंच कर चमरौधा में पी गए चाचा दारू...

भैंस बेंच कर चमरौधा में पी गए चाचा दारू,
फिर बाद में खेली होली।
चाची जी को पता लगा तब कड़वे बैन वो बोलीं-
बोलीं, उल्लू, गाँव में चली गयी गोली-
तुम खेलति हो होली!!
सुनकर इतना आग बबूला, बन गए चाचा चोर,
जेवर घर से चोरी हो गया घर में मच गया शॊर....
भांग का नशा निराला, अब घर का निकल गया दीवाला ...
पहले पी थी देशी दारू, अब पी गए अंगरेजी,
उसके ऊपर भांग खा गए, बोले मै हूँ क्रेजी-
घर बिक जाए, खेत हो गिरवीं, या हो जाऊं कंगाल,
हो जाए बदनाम नाम ये कुछ भी नहीं मलाल।।।
बस होली में गाल रहें ये लाल....
सही लिखते हैं जी शिशुपाल ....
हमारे गाल रहें ये लाल।।

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