बाग़ हुए ग़ायब क्यों-
पसरा खेतों में सन्नाटा है।
क्यों हमने खेती की ख़ातिर
तालाबों को पाटा है?
पगडंडी को काट-छाँट कर
फ़सलें बोयी जाती क्यों?
चरागाह के लिए नज़र अब
भूमि नहीं आती है क्यों?
सड़क किनारे आम और
महुए के पेड़ नहीं दिखते।
क्यों पढ़ने-लिखने वाले अब
इन पर शोध नहीं लिखते?
सुना है विद्यालय, शिक्षा की-
परिभाषा है बदल गयी।
पढ़ने और पढ़ाने वालों की
भाषा भी बदल गयी।।
'शिशु' याद हैं वो दिन,
जब हम विद्यालय जाते थे।
उपयोगी शिक्षा के साथ
ज्ञान प्राकृतिक पाते थे।
याद आ गए बाग़ और वो-
जंगल जिनमें जाते थे।
जहाँ इमलिया, खट्टे बेर
यार-दोस्त संग खाते थे।।
अब विद्यालय के नज़दीक
कोई बाग़ नहीं दिखते।
पर्यावरण प्रदूषण पर अब
बच्चे हैं निबंध लिखते।।
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