Wednesday, January 23, 2019

काँटा


उसदिन से हलचल है मन में,
देखा जबसे है उपवन में-
पुष्प से बढ़कर काँटे हैं,
दुःख तो मिलकल बाँटे हैं,
पुष्प गुच्छ तो रगड़-रगड़ कर,
मिट्टी में मिल जाते सड़कर।
काँटे काँटों को लेकिन
धैर्य बंधाते रहते हैं,
सुख हों या तकलीफें हों,
दोनों मिलकल सहते हैं!

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