चले आओ, निकालो प्रभात फेरी तुम।
बेख़ौफ़ डालिए वोट, न लगाओ देरी तुम।।
हमारे वोट से जो बैठ गए हो कुर्सी पर।
गुज़ारिश है न उड़ाओ मजाक मेरी तुम।।
तुम्हें रिश्वत से मिली है नौकरी 'ए दोस्त'।
अब हक़ है- 'ख़ूब करो फेराफेरी तुम'।।
तुम सियासतदां हो मियाँ, बात मानेंगे लोग।
सुब्ह को सुब्ह नहीं, कहो रात अंधेरी तुम।।
रास्ते में काँटे डालने का गर शौक़ है तुम्हें।
क्यों उगा रहे हो आम? उगाओ बेरी तुम।।
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