यदि जुआँ संघर्ष का खेले ही ठीक हैं-
और दुःख, तकलीफ़ यदि झेले ही ठीक हैं।
साथ में रहना यदि तुमको नहीं मंजूर,
खोलकर लब बोले दें, अकेले ही ठीक हैं।
'भीड़' कहकर मत गरीबों का करें अपमान,
मॉल छोड़ो, आज भी मेले ही ठीक हैं।
कर्ज़ लेकर ज़िंदगी में मौजमस्ती तुम करो!
किन्तु अपनी जेब में धेले ही ठीक हैं।
कार वालों से उलझते क्यों दरोगा जी?
सब्जियाँ, फ़लफ्रूट के ठेले ही ठीक हैं।
©नज़र_नज़र_का_फ़ेर #शिशु
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