Monday, January 26, 2009

बदलते रिश्ते और बदलती परिभाषाएं

बद्ज़ातों की इस दुनिया में इंसानों की औक़ात कहां।
पहले जो रिश्ते बनते थे, अब उनमें वैसी बात कहां।।


पहले मम्मी थीं माता जी अब बापू डैडी कहलाते।
आंटी और अंकल जो अब हैं चाचा-चाची थे कहलाते।।


पहले का चंदामामा अब बच्चों के काम न आयेगा।
वैज्ञानिक करते हैं रिसर्च, रहने के काम में आयेगा।।


पहले थे केवल ही गरीब, अब परिभाषा उनकी बदली।
गांवों में अब कुछ ही गरीब, शहरों में दिखते हैं असली।।


रूपये की हालत अब पतली, तब पतली दाल हुआ करती।
अब उस रूपये में मिलता क्या? जिसमें तब दाल मिला करती।।


पहले था प्यार इशारों में, जो पकड़े गये तो हंगामा।
अब होता खुल्लम-खुल्ला है, ना होता कोई हंगामा।।


पहले की चिट्ठी प्यारी थी, उसमें था गहरा प्यार छुपा।
यदि प्रेम पत्र होता कोई पढ़ता हर कोई छुपा-छुपा।।


अब मेल का नया ज़माना है, चैटिंग करते खुल्लम-खुल्ला,
जीमेल का नया जमाना है, एसएमएस करे खुल्लम-खुल्ला।।


पहले तो गांव की गोरी को शहरों के लड़के प्यार करें।
अब शहरी लड़की को देखो? गांवों के लड़के प्यार करें।।


पहले तो 'शिशु' अकेला था, तब लिखने की हसरते नहीं।।
अब लिखने का मन करता है तो देखो उस पर समय नहीं।।

2 comments:

Udan Tashtari said...

समय कितना बदल गया है!! सही आंकलन!

संगीता पुरी said...

सही कहा.....समय बहुत बदल गया है।

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