Wednesday, January 28, 2009

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा
सभ्य सभी को कर देंगे सौगंध उन्हें तेरी देवा

तू राम है वो हैं रामबीर, कलयुग की सेना कहलाती
वैसे भी अमन है जहाँ-तहां, है कहर वंही पर बरसाती

तूने सीता को त्यागा था एक आम पुरूष के कहने पर
वो उसी रह पर चलते हैं कुछ नेताओं के कहने पर

जिस तरह आपके लव कुश थे लड़की का कोई नाम नही
ये लोग भी वही सोचतें हैं महिला का कोई काम नही

ये पूजा करते देवी की जो मन्दिर में बैठी होती
उस महिला पर ये जुल्म करे जो घर - घर कम होती रहती

संस्कृति सभ्यता संस्कार उनके ये अस्त्र कहते हैं
उन अश्त्रो-शस्त्रों को लेकर महिला पर जुल्म वो ढाते हैं

ख़ुद जींस पैंट में घूम रहे सभ्यता का पाठ पढायेंगे
ख़ुद फिल्मी गीत गा रहे हैं औरों को भजन सुनायेंगे

'शिशु' कहें वो वीर नही कायर जो स्त्री पर अत्याचार करें
यदि वीर कहाते अपने को शरहद पर जाकर वार करें।

1 comment:

रवीन्द्र प्रभात said...

सुन्दर रचना...बधाई !!

Popular Posts

Internship

After learning typing from Hardoi and completing my graduation, I went to Meerut with the enthusiasm that I would get a job easily in a priv...