Thursday, February 5, 2009

भारत की ऋतुएँ सब प्यारी .............

डाल-डाल पर फूल खिले हैं
कलियाँ भी मुस्काईं
भौंरे तितली गीत गा रहे
पतझड़ की ऋतु आई

बोल पपीहा रहा कहीं पर
कोयल गाती है मधुर गीत
भौरें गुंजन करते रहते
जैसे साजन-सजनी की प्रीत

सूरज की तपन बढ़ी ऐसी
कुछ-कुछ गर्मी लगती है
जाड़ा समझो हो गया ख़त्म
नयी ऋतु प्यारी ये लगाती है

इस मनमोहक ऋतु का
हर कोई करता रहता इन्तजार
सुंदरियाँ करती हैं श्रृंगार
प्रिय का पाती भरपूर प्यार

फसलें पक जायेंगी
होगा अनाज भरपूर
यह सोच रहा है एक किसान
अब पल वो नही है दूर

भारत की ऋतुएँ सब प्यारी
हर ऋतु का अपना अलग मजा
लेकिन इस बसंत ऋतु का
सबसे बढ़कर है अलग मजा

6 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी लगी आपकी यह कविता...

रंजना said...

waah ! sundar kavita......

Anonymous said...

achi nahi hay......... bahut achi hay!!!!!!!!!.............. i likw it

sahana sana said...

वहवा वहवा क्य़ा कहानी है

Anonymous said...

वहवा वहवा क्य़ा कहानी है

Anonymous said...

kya kavita hai. maza a gaya.

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