प्रजापति की पिकनिक में जमा हुए कुछ वीर,
सबसे पहले पहुंचे रेलवे अधिकारी भाई 'सत्यवीर'.
उसके बाद हेमेंटेच के मालिक जो 'हेमंत' 'सुनीता',
'हर्ष' और 'स्वागत' से जिनने दिल सबलोगों का जीता.
'दीपक' सूरज बनकर आया मौसम बन गया अच्छा,
जगतपिता 'जगदीश' आये फिर लेकर बीबी बच्चा.
दिखलाई 'प्रसाद' ने 'प्रतिभा' बेटा-बेटी के संग आये,
देखा जब 'स्वत्रंत' को सबने हर्षित होकर सब मुस्काये,
पुलिश प्रसाशन था मुस्तैद जब आये 'शिवराज'
आये 'विनय' 'प्रजापति मालिक' छोड़ घरेलू काज
शादी का विज्ञापन देते बिलकुल ही जो मुफ्त
'राठोर जी' 'गोला' संग आये दिखते बिलकुल चुस्त
हंसते रहते हैं 'दुष्यंत' राज है इसमें कुछ भारी,
अगली मीटिंग में आयेंगे बात जान लूँगा सारी,
'इन्द्रजीत' गरजे बन इन्द्र सिंघासन धरती के डोले,
कान लगाकर सुना सभी ने जब 'राजेन्द्रजी' बोले
'अच्छे लाल' हैं दिल के अच्छे इसीलिये मन भाते
देखा मीटिंग में जब भी तो सबके बाद वही आते
कठिन पढ़ाई वाले भाई सौम्य सभ्य से दिखते
नाम याद है नहीं मुझे पर अब डॉक्टर हैं लिखते
दीपक भाई उनका नाम लिखकर जरा बताना
अगली मीटिंग में जब आना उन्हें साथ में लाना
आईटीआई थे पर बीटेक 'हरिराम' जी ने कर डाला
छोटे पद से मैनेजर बन सबको हैरत में डाला
पुत्र 'प्रवीण' गर्व से बोला पिता ही असली मार्ग दिखाते
जब भी होती कोई मुश्किल हल वो उसका हमें बताते
सिविल परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ 'संदीप'
प्रजापति परिवार में कर देगा रोशन वो दीप
'अजय' ने बोला राजनीति में क्यूँ पड़ते हो भाई
राजेंद्र जी बोले यारों इस बिन संभव नहीं लडाई
'वर्मा' जी ने अपना गुस्सा जोर-शोर से दिखलाया
बोले मैसेज मैं करता पर मैसेज पर ना कोई आया
क्यूँ समाज है अबतक पिछड़ा कारण जरा बताना
विनय, सत्यवीर फिर बोले असल बात पर सब आना
सत्यवीर जी ने फरमाया गाँव में जाना बहुत जरूरी
वहीं पता तब लग पायेगा क्या है असली मजबूरी
'पुष्पा जी' का खाना खाने केवल ही 'शिशु' आया था
मगर 'सुनीता जी' का खाना भी कुछ कम ना भाया था
'प्रतिभा जी' ने फिर सबको था बारी-बारी खूब परोसा
मिलेगा अगली मीटिंग में भी मुझको तो है यही भरोसा,
नाम याद ना 'चावल वाली दीदी' मैं तो बोलूँगा
अगली मीटिंग में उनके खाने का डिब्बा खोलूँगा
भूल हुयी लिखने यदि कुछ 'शिशु' समझ जी करना माफ़
माफ़ करोगी मुझे पता है अलग और से हैं सब आप
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2 comments:
Shishu Bhaiya, i have read your poems
PRAJAPATI KI PICNIC MEIN JAMA HUE KUCH VEER, NAZAR NAZAR KAA FER. These are very good and humorous poems. I will read rest of the poems very soon.
itni saari baato ko ek kavita k roop me prastut karna ,jaaise ,otiyo ko ek mala me piro dena,
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