Wednesday, May 5, 2010

हट धत्त, तुझे धिक्कार है, तुझको न यदि स्वीकार है...

हट धत्त, तुझे धिक्कार है 
तुझको न यदि स्वीकार है 
तू प्रेम का स्वरुप है -
तुझसे ही ये संसार है. 

भाषा सभी सामान हैं,
बस लफ़्ज का ही फ़र्क है 
यदि इसके चक्कर में पड़ा 
तो समझ बेड़ा ग़र्क है

है धर्म क्या? और रीति क्या?
तू क्यूँ रिवाज़ो में पड़ा,
बस प्यार के दो बोल अच्छे 
इसके लिए तू है अड़ा.

तू पार्टी के नाम पर -
चन्दा उगाही कर रहा, 
और वोट लेने के लिए 
जनता को केवल ठग रहा. 

कर जोड़ विनती आपसे,
और आपके बाहुबली बाप से 
कुछ कर रहे अच्छा करो- 
तुम मत बनो सब सांप से

3 comments:

SANJEEV RANA said...

बहुत बढ़िया

honesty project democracy said...

उम्दा प्रस्तुती के लिए आपका आभार !!!/

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

यदि इसके चक्कर में पड़ा
तो समझ बेड़ा ग़र्क है ||
likhte rahiye. :)

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