Tuesday, June 15, 2010

जो न हँसे उसको ले लटकाओ सूली पर..

रहो सदा संतुष्ट घोर वर्षा कि धूप में,
गर्मी हो या शीत, लालिमा रखना मुख पर.
नफ़रत मुझको कमजोरी और पीतवर्ण से,
जो न हँसे उसको ले लटकाओ सूली पर..

- प्लेखानव (रूस के क्रांतिकारी कवि)

1 comment:

क्या बात है? said...

kavita bahut achchhee lagee shishu ji.

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